कुछ समय पहले एक परिचित भारत से लन्दन आईं थीं घूमने ..कहने लगीं यहाँ के  बुड्ढों  को देखकर कितना अच्छा लगता है ..कितने भी बूढ़े हो जाये अपना सारा काम खुद करते हैं घरवालों पर भी निर्भर नहीं रहते. अपना घर, अपनी कार , खुद सामान लाना ,अपने सारे काम करना .एक हमारे यहाँ के बुड्ढ़े  होते हैं  जरा उम्र बढ़ी   नहीं कि बस ..छोड़ दिए हाथ पैर.. फिर बस बैठ कर परेशान करेंगे घरवालों को …यहाँ के लोगों पर बुढ़ापा नहीं आता क्या?..

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उनका ये सवाल बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर गया मुझे …क्या वाकई यहाँ के बुजुर्ग ज्यादा समर्थ हैं ,ज्यादा मजबूत और आत्मनिर्भर हैं ,ज्यादा ज़िंदगी  से भरपूर ?क्या सचमुच उनपर बुढ़ापा हावी नहीं होता ?मेरी ही एक पडोसी थीं ८० की अवस्था तो होगी ही .. बेटा- बेटी अलग रहते हैं ,अपना एक कमरे का घर है ,एक कार है आराम से अकेले जीती हैं एक दिन किसी काम से उनका दरवाया खटखटाया तो खुला नहीं ,  सोचा सो रही होंगी ,फिर दुसरे दिन गई फिर भी नहीं …कार बाहर ही खड़ी थी तो ये पक्का था कि घर के अन्दर ही हैं ..मैने  २-४ बार घंटी बजाई तो दरवाजा खुला बहुत ही उनींदी  सी आँखों के साथ. मैंने पूछा तो पता चला कि पिछले ३ दिनों से वह  बहुत बीमार हैं ..कमर की हड्डी में कुछ परेशानी है जो ज्यादा बढ़ गई है और उन्होंने ३ दिन से कुछ खाया पिया भी नहीं है ..डॉ०  का अपोयमेंट  लिया है जो २ दिन बाद है …तब जाएँगी. बेटा पास  ही  में रहता है पर उसे क्या बताना.. वो क्या कर सकता है. मैंने उनसे कहा कि किसी मदद की  जरुरत हो तो मुझे बता दें. उसके बाद वो खुद ही डॉ०  के यहाँ चक्कर लगाती रहीं और अपना काम चलाती रहीं पर उसके बाद से मेरे बच्चों के लिए गाहे बगाहे चॉकलेट   भेज देतीं कि उनके यहाँ कोई नहीं है खाने  वाला …लोग गिफ्ट दे जाते हैं वो इनका क्या करें, हमारे त्योहारों पर फूलों के गुल्दास्त्ते देने आतीं .यहाँ तक कि छुट्टी में इंडिया जाते वक़्त बच्चों को १०-१० £ भी दिए कि एन्जॉय करना जैसे हमारी दादी नानी देती थीं कहीं जाते समय.उनकी ये हरकते जैसे उनके अन्दर की कसक निकाल देती थीं …हाँ वैसे सब ठीक ही था .

एक और थीं बुजुर्ग महिला … घर के सामने ही रहती थीं एक दिन उनकी पोस्ट गलती से हमारे घर आ गई , तो देने गई मैं .घर में घुसते ही देखा, पूरे कॉरिडोर  में कुछ लोगों के फोटो ही फोटो लगे हुए हैं ..अपने डंडे के सहारे चलते हुए वो मुझे .लिविंग रूम से होते हुए बेडरूम  में ले गईं ..कोई भी कोना ऐसा नहीं था जहाँ कोई फोटो  ना रखा  हो अचानक बोली “हैव यू  सीन दीज़   पिक्चर्स ?” कोई अँधा ही होगा जिन्हें वो ना दिखेंगी ..मैने सर हिलाया ..और वो शुरू हो गईं परिचय कराना  .”.ये मेरी पोती है ..और ये बेटा…ये मेरी बेटी का बेटा है …और ये मेरी बेटियां” …कुल मिलाकर १० लोग होंगे परिवार में ..मैने पूछा आप मिलती हैं इनसे ? बड़े फख्र  से जबाब दिया उन्होंने ” यस  ऑफकोर्स … ऐवरी क्रिसमस  आई सी देम ” .और ये कप देख रही हो? मेरे बेटे ने मदर्स  डे पर भेजा था ” .वो मुझे ऐसी चीज़ें दिखाए जा रही थीं पर  मुझे जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था …अचानक सुना .”.बहुत बहुत “शुक्रिया …कभी आना कॉफ़ी  पियेंगे साथ ..अभी मुझे जरा ब्यूटी पार्लर  जाना है ..फेशियल कराने और बाल सेट कराने .वहाँ  वो लड़की बहुत अच्छा फेशियल  करती है सारा तनाव दूर होता जाता है ..और समय भी कट जाता है” .वो मुस्कुराकर कह रही थीं. पर वहां रखी निर्जीव तस्वीरें जैसे उस मुस्कान के पीछे का सब अनकहा बयाँ कर रही थीं. मैं भी मुस्कुराई और वापस आ गई ..कितनी खुशहाल जिन्दगी है इनलोगों की .
घर से बच्चे सत्रह साल के होते ही चले जाते हैं अपने अपने रास्ते .काम से छुट्टी तो बड़ा घर छोड़ एक छोटा घर ले लेते हैं ये बुजुर्ग ,कार का साइज़ भी छोटा हो जाता है…. सेवेन सीटर का क्या करना अब ? गुजारा  भत्ता सरकार दे देगी और चिकित्सा  के लिए सरकारी क्लिनिक हैं ही …और क्या चाहिए जीने के लिए. जब तक खुद चलने फिरने के काबिल हैं ठीक है वर्ना एक बार फिर गृह  परिवर्तन …ओल्ड एज  होम ..वहां भी सब सुविधा होंगी… इमरजेंसी  के लिए एक बटन भी होगा जिसे दबाने से एम्बुलेंस  आ जाएगी और किसी चीज़ की क्या जरुरत .अपने आसपास अपने ही जैसे अनगिनत लोगों को रोज़ मरते   देख अपनी मौत से पहले ही ना जाने कितनी मौत मर जाते हैं ,और नई परेशानी को लेकर क्लिनिक के चक्कर लगाते ..रास्ते चलते बार बार पीछे मुड़कर देखते रहते हैं शायद कोई पुकार रहा है .फिर अपने आप से ही बात करते मुस्कुराते हैं  “आज हेयर डाई  के लिए जाना है .” ..आते हुए अचानक अपने घर वाली गली का ध्यान नहीं रहता ..कहीं दूसरी गली में मुड  कर भटक जाते हैं ..फिर कोई पुलिस  को इत्तला कर देता  है और वो किसी तरह पता करके घर तक छोड़ आते हैं .कितना व्यवस्थित  है सब कुछ .,
और हमारे यहाँ… बुजुर्ग कहीं नहीं जाते ..घर पर एक खाट  पर  बैठ कर ही भुनभुनाते रहते हैं .फिर जोर का ठहाका लगा कर कहते हैं अच्छा जरा बढ़िया सी चाय पिलाओ और चाय पीकर एकदम तरोताजा और फिर चर्चाएँ यहाँ की वहाँ  की .उसपर अपनी कार भी नहीं ..बीमार तो वो भी होते हैं .पर घर से कोई ना कोई ले जाता है अपने साथ. वहाँ  भी डाक्टर को हड़का आते हैं कि बेकार की फीस लेते हैं ये लोग कुछ हुआ  ही नहीं है… उन्हें बस जरा सा सर दर्द हुआ है ..बच्चे आयेंगे अभी स्कूल से उनसे बातें कर ठीक हो जायेगा .पोते – नातिओं के साथ अपनी उम्र का आभास ही नहीं रहता… अपना बचपन फिर जी लेते हैं एक बार ..और जीने की ख्वाहिश  बनी रहती है ..भले ही समय बुदबुदाते बीते या बहु बेटे की खुन्खुनाहट  सुनकर, पर मजे में कट जाता है .आस पास की चहल पहल, बच्चों का शोरगुल और जवानों की कार्यशक्ति ,  कभी बुड्ढा  होने ही नहीं देती उन्हें ..फेशियल  की ना जरुरत है, ना ही समय. चेहरे की आभा बनी रहती है घर की मलाई लगा कर ही .समय सारा बीत जाता है घरवालों पर नजर रखने में   और यहाँ वहां गपियाने में .


और मैं सोच रही थी ….कि बुढ़ापा कहाँ नहीं आता ? किसको नहीं आता?






कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि अब हम भी पश्चिम  से प्रभावित होकर वैसे ही व्यवस्था अपनाने लगे हैं .हमारी आजादी में खलल ना पड़े इसलिए अपने बुजुर्गों को आत्मनिर्भर  देखना चाहते हैं हम ..भले ही तिल तिल कर  क्यों ना हजारों मौत मरें वो ,क्या प्यार और अपनेपन  की जरुरत सिर्फ बच्चों और जवानों  को होती है…? बुड्ढों के जीने के लिए तो सिर्फ व्यवस्था ही  जरुरी है. 


चित्र गूगल से साभार