एक १४-१५ साल कि लड़की घर में घुसती है ” मोम ऍम आई एलाउड तो गो आउट विथ सम वन” ?अन्दर से चिल्लाती एक आवाज़. दिमाग ख़राब हो गया क्या तेरा? ये उम्र है इन सब कामो की ?पढाई पर ध्यान दो ...यू वीयर्ड मोम आल माय फ्रेंड्स आर गोइंग ..तो जाने दो उन्हें यह हमारा कल्चर नहीं .”ओके ओके नोट अगेन ..आई एम् हंगरी .आलू का परांठा है? अब आवाज़ बदलती है ...ओह काम ऑन स्वीटी! ये इंडिया है क्या ? फ्रिज में पास्ता पड़ा है खा लो.
आह  “कोकोनट पीपल” ऊपर से भूरे अन्दर से गोरे. (कम से कम बनने की कोशिश तो कर ही सकते हैं). 
लोगों से भरा एक हॉल. बीच में ना जाने किस ज़माने के पंजाबी गीतों पर बाल रूम डांस की तर्ज़ पर थिरकते कुछ लोग .भारी काम की कढी हुई साड़ियाँ ,सर पर ६० के दशक का सा जूड़ा. जब आये थे भारत से, यही फैशन था. भारत अब खुद इंडिया बन चुका है ये किसे खबर है.उसपर नकली नगों की भारी ज्वेलरी. किसी शादी का जश्न तो नहीं था.एक टीन एजर लड़की के जन्मदिन की पार्टी थी. टिपिकल अंग्रेजी में बतियाते लोग, हिंदी किसी को समझ नहीं आती ना बोलनी आती है.खालिस हिन्दुस्तानी खाना है मेनू में कोई चीनी, जापानी, इतलियानी खाने का नामो निशां नहीं हाँ बार पर हर तरह के पेय है. कुछ भूल कर कुछ याद रखने की जुगत के लिए जरुरी है शायद. केक है और शेम्पेन भी खुली है. पर डी जे ने भांगड़ा बजाना नहीं छोड़ा है.भारी लहंगे में सजी लड़की के  केक काटते ही उसने पंजाबी बोलियाँ शुरू कर दीं हैं, लड़की के सारे रिश्तेदारों के नाम वाली. आ आकर सब लड़की को केक खिला रहे हैं. शेम्पेन पी रहे हैं गाळ से गाल छुआ रहे हैं. you can take an Indian out of India but you can not take out  India out of an Indian (क्या करें भारतीय को तो भारत से बाहर ले आये पर भारतीयों के दिल से कैसे भारत बाहर जाये). . 
आज  मैच है भारत पकिस्तान का. सबने १ महीने के लिए स्पोर्ट चैनल ले लिया था. कुछ ने ऑफिस से छुट्टी भी. अचानक नीले रंग का “भारतीय गणराज्य के नागरिक ” लिखा हुआ पासपोर्ट नजरों में उभर आया है जिसे बड़ी मेहनत और मिन्नतों के बाद विदेशी पासपोर्ट प्राप्ति के बाद समर्पित किया था. पड़ोस से सेवइयां आया करती हैं  पर आज सबका मन था कि काश उन्हें रुमाल देने जाने का मौका मिल जाये. भारत जीत जाये. पीछे गैराज में किसी डिब्बे से निकाल कर तिरंगा भी मेज पर सजा दिया गया है पांच पौंडस का भारतीय बाजार से खरीदा था इन्हीं मौकों के लिए. आखिर अपनी पहचान किसी तरह बचाकर रखनी ही है. क्या हुआ अगर विदेशी बनने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं.
गोरे तो कभी अपनाते नहीं .अपनों ने भी प्रवासी नाम दे दिया है.
प्रवासी फैशन ,प्रवासी संस्कृति और अब तो हिंदी और साहित्य भी प्रवासी .गोरे बनने की तमन्ना लिए पर भारतीयता का कवच ओढ़े हुए यही है पहचान अब – कोकोनट पीपल…  

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