सफलता पाना आसान है पर उसे उसी स्तर पर बनाये रखना मुश्किल. शायद आप लोगों ने भी सुन रखा होगा. कुछ लोग मानते होंगे और कुछ लोग नहीं. परन्तु मैं हमेशा ही इस विचार से १००% सहमत रही हूँ. अपने आसपास ,या दूर- दूर न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण मुझे मिल जाते हैं जिन्हें देख कर इस विचार की सत्यता प्रमाणित होती रहती है.अपने आसपास भी आप गौर करें तो पाएंगे कि कितने ही लोग एक छलांग में ऊपर चढ जाते हैं पर कुछ समय बाद उनका कुछ अता पता नहीं मिलता. ..ज्यादा दूर मत जाइये अपनी इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में ही देखिये – अरुण गोविल ,दीपिका राम सीता बनकर घर घर पूजे जाते थे परन्तु सीरियल के ख़त्म होते ही उनकी राम कहानी भी ख़त्म हो गई .वहीँ अपनी तुलसी मैया आदर्श बहु बनने के बाद कहाँ गईं किसी को परवाह नहीं.जैसे रोनित रॉय ,राहुल रॉय ,अनु कपूर, विवेक मुशरान ,और भी ना जाने कितने ऐसे लोग रहे होंगे जिनकी पहली फिल्म सुपर हिट हुई परन्तु उसके बाद वे फ्लॉप हो गए .ऐसे उदाहरण समाज के हर क्षेत्र में हर वर्ग में, हर उम्र के लोगों में देखे जा सकते हैं. आखिर क्या वजह है? शानदार शुरुआत होने पर, बेमिसाल सफलता मिलने के वावजूद भी कुछ लोग सफल नहीं हो पाते या यूँ कहिये कि सफलता को आगे नहीं बढ़ा पाते या उसके स्तर को बनाये नहीं रख पाते.
कुछ लोग कहेंगे कि यह सब तो किस्मत की बात है .परन्तु मेरे ख्याल से किस्मत के अलावा भी कुछ बातें है जो सफलता टिकाये रख पाने में बाधक बन जाती हैं. गौर फरमाइयेगा –
– असल में किसी भी व्यक्ति की सफलता में वह व्यक्ति अकेला नहीं होता , प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बहुत से लोग शामिल होते हैं और कई बार इन्हीं लोगों के सहारे वह सफलता पा जाते हैं परन्तु उसके बाद उन सहारों की कमी या अनुपस्थिति में वे उसी गति से आगे नहीं बढ़ पाते .
– हम अपनी मेहनत और लगन से जब एक जगह पर अपना स्थान बना लेते हैं तो बाकी लोगों की हमसे उम्मीदें बढ़ जाती हैं. वह हमसे उससे अच्छा और अच्छा करने की उम्मीद करते हैं और उन उमीदों पर हमेशा खरे ना उतरने के एवज़ में हम वह स्थान गँवा देते हैं.इसका मतलब यह नहीं कि सफलता पाने के बाद हमारे गुण कम हो जाते हैं बल्कि निरंतर अपने आपको और ऊँचा उठाने और लगातार अपने को बेहतर बनाने का गुण हममे नहीं होता और इसी कारण जिसमें यह गुण होता है वह हमसे आगे निकल जाता है .और दुनिया का दस्तूर है कि चढ़ते सूरज को ही सलाम करती है.
– कई बार सफल व्यक्ति में घमंड पैदा हो जाता है और इस कारण वह दुसरे किसी भी व्यक्ति को अयोग्य समझ लेता है.उसके गुणों और खूबियों से सीखने की बजाय वह उन्हें नकार देता है . उसकी यह प्रवृति उसे कुछ भी नया और अच्छा सीखने से रोकती है और वह जल्दी ही अपनी पाई सफलता से नीचे आ जाता है.
– इंसान गलतियों का पुतला है और कोई ना कोई गलती उससे हो ही जाती है हमेशा एक जैसा परफोर्मेंस देना सम्भव नहीं होता और कई बार सफलता के बाद कुछ एक असफलताओं का सामना करने से व्यक्ति में कुंठा और निराशा जन्म ले लेती है और वह अपना बुद्धि विवेक खो बैठता है परिणाम स्वरुप अपनी सफलता कायम नहीं रख पाता .
– ज्यादातर सफलता के सौपान चढ़ जाने के बाद व्यक्ति अपनी कमियों के प्रति उदासीन हो जाता है और दूसरों की कमियां गिनाने के चक्कर में खुद की सुधारना भूल जाता है.वह इस मुगालते में जीता रहता है कि बाकी सब बेकार हैं दुनिया में कोई धुरंधर है तो बस वही .और असली दुनिया चलती रहती है ,उससे आगे निकल जाती है,और वह अपने फूल्स पैराडाइज में ही सोता रहता है.
– ईर्ष्या मनुष्य का स्वाभाविक गुण है .ऐसा भी होता है कि आपकी सफलता से जलने बाले बहुतायत में हो जाते हैं और उनकी जी जान से कोशिश रहती है कि वे आपकी जगह पहुंचे ना पहुंचे परन्तु आपको खींच खांच कर नीचे ले आया जाये और अगर आप मजबूती से अपनी जगह नहीं पकड़ कर बैठे हैं,आपके पैर धरातल पर मजबूती से नहीं रखें हैं , तो ऐसे तत्व जल्दी ही आपकी टांग पकड़ कर नीचे खींच लाते हैं .
– यह सत्य है कि इस दुनिया में कुछ भी स्थिर नहीं है सब आना जाना है जो आज आपका है वह कल दुसरे का होगा ही. यह हम सब जानते हैं परन्तु अपनी मेहनत से पाई सफलता कुछ समय तक सहेज कर रख पाना भी हर कोई चाहता है पर कितने लोग सफल हो पाते हैं इस में ?. सफलता पाने से ज्यादा उसे कायम रखना मुश्किल होता है.कम से कम मुझे तो यही लगता है .आपका क्या ख़याल है?
शिखा ये बात तुमने बिल्कुल सही कही, सिर्फ अपनी सफलता का श्रेय खुद लेने वाले कहीं गलत होते हैं होते हैं ऐसे लोग और ऐसे भी होते हैं जो दूसरों की सफलता का श्रेय भी खुद ही ले जाते हैं. पाना और उसको सहेज कर रखना और उसको जारी रखना अधिक कठिन है.
…आपने सही पहचाना है शिखा जी!…सफलता हासिल करने के बाद उसे टिकाए रखना सभी के बस की बात नही है…आपने इसके जितने भी कारण बताए है, सभी गौर फरमाने लायक है!…अगर इन सभी को ध्यान में रख कर चलने के बाद भी अगर सफलता आप के हाथ से रेत की तरह फिसल जाती है तो, तभी आप भाग्य को दोषी ठहरा सकते है!…बहुत ही उपयुक्त आलेख, धन्यवाद!
sach kaha aapne, 100% aapse sahmat
baki sabhi baten to aapne sahi kahi hain kintu ek bat se aapki main sahmat nahi hoon vah ye ki ramayan serial ke samapt hone ke bad se arun govil v deepika ke bare me kyonki aaj bhi yah sthiti hai ki ram seeta ke kirdar me yadi kisi aur ko dekhte hain to vah keval abhinay karta lagta hai jabki ve sakshat ram seeta lagte hain.
बाते तो अच्छी उठाई गयी है और कुछ हद तक सही है पर मेरे ख्याल में सफलता पाकर व्यक्ति चर्चित हो जाता है और यही से उस सफलता को बनायें रख पाना मुश्किल हो जाता है क्योकि अचानक भीड़ से हटकर आमो- खास हो जाता है… उसका दैनिंदनी कार्य प्रभावित हो जाते है वो पहले की तरह पुर सुकुनियत से कुछ भी नहीं कर पाता …व्यस्तता इस कदर हावी हो जाती है की व्यक्ति की सारी समय सारणी तार-तार हो जाती है और यही से वो कुछ खोने लगता है …जो इन चीजो से निबट पाने में सक्षम हो लेते है वो अपनी सफलता भी बनायें रखते है और असाधारण तरीके से उन्नति कर पाते है..ये मेरा नजरिया है अलग-अलग लोगो के विचार भिन्न -भिन्न हो सकते है ….
साधुवाद ऐसे ही लिखती रहिये
@शिखा कौशिक ! सही कहा आपने ..मैंने यह नहीं कहा कि उनकी क्षमता या टेलेंट पर कोई शक है..मेरा कहना है कि सफलता की जिस ऊँचाई को उन्होंने उस दौरान छुआ ( कैरियर वाइज) उसके बाद उसे कायम नहीं रख सके वे.
रातों रात सफल हो जाना और कठिन परिश्रम के बद शनैः शनैः सफलता के सोपान चढ़ते जाना दोनों में बुनियादी फर्क होता है . कठिन परिश्रम से अर्जित सफलता पाने वाला व्यक्ति श्रम स्वेद बहाने के बाद मानसिक रूप से अपने आप को तैयार भी पाता है आगे और परिश्रम करने के लिए . रातों रात सफल लोग बहुधा सफलता के मद में चूर होकर अपनी सफलता को क्षणभंगी बना लेते है . वैसे आज के गला काट प्रतियोगिता युग में सफलता के नित नए प्रतिमान बनाये जा रहे है वहाँ कब कौन आपके आगे वाले सोपान पर खड़ा होगा पता नहीं , बस सीखने की अदम्य इच्छा और आगे बढ़ते रहने की लालसा ही इस प्रतियोगिता में आपको प्रतिभागी की तरह रख सकती है . पता नहीं दिमाग में कितने सारे ख्याल आ रहे है लेकिन सोच रहा हूँ इतना काफी है .
सफलता पाने के बाद
१ उम्मीदे बढ़ जाती हैं व्यक्ति से
२ व्यक्ति कभी कभी श्रम करना कम कर देता है.
३ कभी कभी सफलता का आंकलन थोडा ज्यादा कर लेते है जिससे स्वतः ही निचे गिरने की सीधी तैयार हो जाती है..
४ सफलता में इन्सान का परिवेश व वातावरण बहुत मायने रखता है…मन्ना डे बहुत अच्छे गायक है..महेंद्र कपूर भी महानतम गायक है मगर बहुत ज्यादा सफल नहीं कहे जाते है…इसका कारण ये था की वो किशोर मुकेश और रफ़ी के परिवेश में पैदा हुए थे…
बहुत बढियां पोस्ट
……………………
आशुतोष की कलम से….
raaton raat ki safalta bahut ghaatak hoti hai … hausla is tasweer wale babua ki tarah honi chahiye . pahchaan ke liye vinamrata , sahanshilta , aur lakshya ki bhawna hi sthirta deti hai
आपका कहना सही है कि सफलता के पीछे सिर्फ सफल व्यक्ति का हाथ नहीं होता लेकिन उसे सफल बनाने में कई हाथ होते हैं और व्यक्ति जब उन साथ देने वालों को नजरंदाज करता है तो वह भी वक़्त के साथ अँधेरे की गर्त में चला जाता है …सफलता के लिए सार्थक और प्रेरणादायी विश्लेषण …..आपका आभार
सफलता पाने में जितना धैर्य, लगन चाहिए उस से अधिक चाहिए उसे बनाये रखने में.. बहुत उम्दा आलेख !
शिखा जी निश्चित ही सुन्दर पोस्ट है .आपने सभी बिंदु छुए हैं किन्तु एक बिंदु जिसे आपने अधिक महत्व नहीं दिया (शामिल ज़रूर किया है ) वह है भाग्य या किस्मत .किसी ने सच ही कहा है "समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को नहीं मिलता " इसे मेरा escapism न समझें. इस पोस्ट तो पढ़ते वक्त बेकन महोदय याद आ रहे थे .आप बधाई की पात्र हैं कि आपने सफलता पाई भी और उसे बनाये भी रखा है .हार्दिक शुभकामनाएं .आप बहुत अच्छा लिखती हैं .
Very true!
आपका कहना सही है,बहुत ही उपयुक्त आलेख, धन्यवाद!
पाना बी मुस्किल है और नीबाना बी मुस्किल है ! पहले तो पाने की इच्छा जब वो मिल जाये तो उससे नीबने की इच्छा ! मेरे ब्लॉग पर जरुर आना ! हवे अ गुड डे !
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अच्छा आलेख
सफलता पाना तो मुश्किल है ही उसे बनाये रखना और भी मुश्किल
बिल्कुल सही चिंतन ! सफलता पा लेना यदि 25% है तो उसे बनाये रख पाना 75% । रुकावटें अनेक आती ही रहेंगी और रोज-रोज शोले जैसी फिल्म कोई बना नहीं सकता ।
बिलकुल सही लिखा है आपने ….
प्रेरक पोस्ट ..
दी, मैं एकदम आपके साथ हूँ…सही कहा है आपने…
सफलता को पाना तो मुश्किल है ही, निभाना और भी मुश्किल….
मैं तो अभी तक स्ट्रगल फेज से ही गुजर रहा हूँ, तो आप समझ सकती होंगी की मुझे ये पोस्ट अच्छी लगी ही होगी…
यहाँ यह देखना भी महत्वपूर्ण है की आप सफलता को आँकते कैसे हैं। सफल होना और साथ ही प्रसिद्धि पाना एक बात है, वहीं सफलता के साथ आत्म संतुष्टि प्राप्त करना एक अलग बात है ।
लोग चौधिया जाते हैं ,भटक जाते हैं ,स्थिरता कायम नहीं रख पाते ,,,आदि आदि
मुद्दा अच्छा है !
एक-एक शब्द सच.
सचमुच बड़ा कठिन है सफलता को पचा पाना.
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"मिले उरूज़ तो कभी गुरूर मत करना,
बुलंदियों के रास्ते ढलान पे हैं" ।
(उरूज़-कामयाबी,शिखर)
आपने बिलकुल दुरुस्त लिखा है ।
पाना भी उतना आसान नही किन्तु निभाना तो और भी कठिन है!
बढ़िया आलेख!
apki baat se main bilkul sahmat hun ki pana bahut aasan hai par use ek had tak nibhana main hi asli pariksha hoti hai …….
* सफलता वह सौभाग्य है जो कि उच्चाकांक्षा, साहस, पसीना बहाने और प्रेरणा से प्राप्त होता है। सफलता के लिये कोई लिफ्ट नही जाती इसलिये सीढ़ीयों से ही जाना पड़ता है।
** आपके प्रश्न का जवाब जो मुझे सूझ रहा है वह यह है कि ऐसे लोग किसी दूसरे द्वारा रचित सफलता की परिभाषा को अपना नहीं समझते।
*** … और इस पोस्ट को पढकर मुझे जॉन मेकेनरो की याद आ रही है जिसने कहा था, “प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं।”
शिखा जी, किस्मत नाम का फैक्टर कम से कम एक प्रतिशत दखल तो रखता ही है और उस दखल के चलते कभी-कभी निन्यानवे प्रतिशत को शून्य में बदल देता है…
यदि सभी अपनी सफलता बरक़रार रख पाते तो दुनिया में सफल लोगो की भीड़ संभाले नहीं संभलती ! जैसा की आप ने कहा की किसी की सफलता असल में कई चीजो के मेल से मिल कर बनती है अगली बार जब वही सारी चीजे नहीं मिलती या उस जैसी कोई दूसरा कम्बीनेशन नहीं मिलाता तो सफलता भी नहीं मिलती | पर कई ऐसे भी ही जी फिर दुबारा उभर कर बाहर आये है क्योकि उन्होंने अपनी पिछली भूलो से सबक लिया |
अच्छा विश्लेषण किया गया है। साधुवाद।
आज तो क्लास लगा ली. सफलता के सिद्धांत का जबरदस्त पाठ पढ़ाउआ है. आभार.
सतत एवं कठोर परिश्रम, लगन और ईमानदारी- मूलाधार हैं सफलता के दीर्घजीवी होने के.
यक़ीनन निभाना ज़्यादा मुश्किल है….. बहुत बढ़िया विवेचन किया आपने…..
Satyam shivam sundaram… 🙂
जब तक सर चढ के न बोले।
तब तक बचा जा सकता है।
शिखा जी,
मानव-मन की सबसे बड़ी कमज़ोरी होती है वो अपने से ऊपर जो भी होता है उसे देखकर ईर्ष्या करने लगता है…उसे पछाड़ने के चक्कर में तमाम तरह के हथकंडे अपनाने लगता है…ऐसे में उठने की जगह पतन की ओर अग्रसर हो जाता है…होना ये चाहिए कि आदमी को अपना मुकाबला हमेशा खुद से ही मानना चाहिए…अपनी काबलियत, अपने स्थापित मानदंड़ो को ऊंचे से ऊंचा करने का प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए…इसके लिए ज़रूरी है कि पैर हमेशा ज़मीन पर ही रहें, ज़रा सी सफ़लता मिलने पर उड़ना शुरू न कर दें…
जय हिंद…
यकीनन निभाना मुश्किल है …
ye to param satya hai, kisi unchai ko chhune me utni mehnat nahi lagti jitna uss unchai pe bane rahne me…:)
aur ye kuchh birle hi kar pate hain..!!
ek sarthak aalekh!!
waise ab aap updesh bhi achchha dene lagi ho…kidding:P:D
सफलता पाने से ज्यादा उसे कायम रखना मुश्किल होता है.कम से कम मुझे तो यही लगता है ….
आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूं।
सफलता निभाना वाकई बहुत मुश्किल है ..बहुत बढ़िया लगा आपका यह आलेख …
सफल होने के साथ सफलता को बनाये रखना या उससे भी ऊपर सफलता हासिल करना निश्चय ही यह ज्यादा मुश्किल काम है …एक बार सफलता का जो स्तर बना लिया उसे बनाये रखने के लिए निरंतर कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है …यह सोच कर निश्चिन्त हो जाएँ कि हम तो अपनी मंजिल पा गए तो वह मंजिल नीचे खिसकने में ज्यादा वक्त नहीं लगाती ..
जहाँ तक सफलता पाने की बात है तो वो भी कड़ी मेहनत से ही मिलती है ..साथ ही भाग्य भी साथ दे ..लेकिन जो लोग केवल भाग्य के भरोसे बैठे रहेंगे उनको तो कभी सफलता नहीं मिल सकती ..
काम तो दोनों ही मुश्किल हैं पर निबाहना ज्यादा मुश्किल है …
कार्पोरेट जगत में काम करने वालो से बेहतर कौन समझेगा इस लेख का सार
बिल्कुल सटीक बात फिर चाहे सफ़लता हो या रिश्ते या पद्………सबको पाना आसान और सहेजना मुश्किल्।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये……"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
जिस क्षेत्र में सफलता पायी है यदि हम उसी क्षेत्र में हिम्मत के साथ डटे रहें तो सफलता कायम रहती है। लेकिन सफलता के साथ जब तक आप प्रेम नहीं पाएंगे सफलता अधूरी ही रहती है। मुझे तो सफलता क्या है यह ही समझ नहीं आता है। किसे मानूं सफलता?
मुझे तो लगता है कि निभाना बहुत कठिन है।
आपके विचारों से सहमत. मगर यह अलग-अलग नजरिये पर निर्भर करता है कि सफलता के मायने क्या है? किसी को लग सकता है कि फलां जगह ऊंची पोस्ट ही सफलता है मगर उस पोस्ट को कायम रख पाने के निमित्त जो पापड झेलने सॉरी बेलने पड़ते हैं उसको भुक्त-भोगी ही समझ सकता है| हर सफलता एक कीमत मांगती है| मेरी राय में सफल वो है जिसे लोग सफल बोलें न कि वह खुद बोले और यह भी तय है कि उसने शार्ट कट से सफलता हासिल की है तो उसे टिकने में बहुत दिक्कत होगी| अमूमन लोग 'पद' वाली सफलता के पीछे भागते हैं और उसके लिए पहले अपना 'कद' नहीं बढ़ा पाते| बहरहाल ये मेरे निजी विचार हैं और इससे सबका सहमत होना जरूरी नहीं है|
शिखा जी आज फिर इस पोस्ट को पढ़ा .सोच रही हूँ असल सफलता के मायने क्या है ?अधिकतर ईमानदारी भी सफलता को पाने और बनाये रखने में बाधक होती है (आप शायद असहमत हो सकती हैं ) इसे मेरा pessimism न समझें .आज तो सफलता उन्ही लोगों के कदम चूम रही है जो बेईमान हैं. ईमानदार सफल होने के बाद कई बार इसलिए अपनी सफलता को बनाये नहीं रख पाता क्योंकि वो ईमानदार है .शायद कुछ लोग मुझसे सहमत होंगे .आपने चिंतन का एक अच्छा विषय दिया है .
shikha ji aapke lekh par ye sher yaad aa raha hai
bulandio par pahuchna koi kamaal nahi,
bulandio par theharnaa kamaal hota hai
एकदम सटीक विश्लेषण …
तुरंत फुरंत लोकप्रियता मिलने वालों का अक्सर यही हाल होता है …
एक बार सफलता प्राप्त कर लेना आसान होता है , मगर उसे टिकाये रखना मुश्किल …सफल होने के लिए तनाव और दबाब झेलना क्या जरुरी है , सोचती हूँ मैं कभी -कभी !
Muskil to nibhani hi hoti hai.
———–
क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?
क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?
Baat jo bhi kahi aapne, ek dam sahi he, lekin asli baat kya he ab wo bhi bata do na pls!
bilkul theek baat likhi hai –
fool's paradise me rahane vala safalata se door jata jayega ….
doosare se seekhane vala sada safalata ki seedhi chadata jayega …
सुंदर आलेख |सुंदर प्रस्तुति |
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|
दिन मैं सूरज गायब हो सकता है
रोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
अच्छा विश्लेषण और विचार करने योग्य बातें.
bahut achcha lekh hai…seekh denewali.
रूतबा आज ख़ुशी से कहीं ऊपर हो गया है एसे में पाना ही निभाने से भी कहीं ज़रूरी लगने लग गया है
हिन्दू नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/hindi-twitter.html
शिखा जी, बहुत गहन अध्ययन झलक रहा है आपके आलेख में.
किन्हीं साहेबान का एक शेर याद आ रहा है
बुलंदियों पे पहुंचना कोई कमाल नहीं
बुलंदियों पे ठहरना कमाल होता है.
दुनिया में स्थिर कुछ भी नही पर मेहनत से अपने स्थान को कुछ हद तक बरकरार रखा जा सकता है …
बाकी परिवर्तन तो संसार का नियम है ही …
फल आने पर डालियाँ विनम्रता से झुक जाती हैं ।
सफलता के लिए मेहनत करनी ही पड़ती है. मगर सफल हो कर मनुष्य बने रहना कठिन होता है. अब का दौर अधिकतर तो माफियाओं का है. समाज में, राजनीति में, साहित्य -कला में सफल ऐसे लोग ही हो रहे है, जो जोड़-तोड़ कर लेते है और उनकी आत्मा भी नहीं मरती. खैर…आपका लेख विचार के लिए बाध्य करता है. सफलता मिलती है है, मगर यह सच है,कि उसे निभाना कठिन कर्म है. जो बड़े नैतिक या महान लोग होते है, वे ही सफल हो कर भी मनुष्य-धर्म कापालन कर पाते हैं.
….शानदार आलेख।
ये तो इम्तहान में आने वाला पाठ है! जय हो गुरुजी!
कायम रखना बहुत मुश्किल काम है..
बिल्कुल सही कहा है आपने ….आपकी बात से सहमत हूं ….।
bahut acchi post..
apne ko sanwarate rahna jeevan prayant ..ye hi safalata hai…
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