सफलता पाना  आसान है पर उसे उसी स्तर पर बनाये रखना मुश्किल. शायद आप लोगों ने भी सुन रखा होगा. कुछ लोग मानते होंगे और कुछ लोग नहीं. परन्तु मैं हमेशा  ही इस विचार से १००% सहमत रही हूँ. अपने आसपास ,या दूर- दूर न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण मुझे मिल जाते हैं जिन्हें  देख कर इस विचार की सत्यता प्रमाणित होती रहती है.अपने आसपास भी आप गौर करें तो पाएंगे कि कितने ही लोग एक छलांग में ऊपर चढ जाते हैं पर कुछ समय बाद उनका कुछ अता पता नहीं मिलता. ..ज्यादा दूर मत जाइये अपनी इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में ही देखिये – अरुण गोविल ,दीपिका राम सीता बनकर घर घर पूजे जाते थे परन्तु सीरियल के ख़त्म होते ही उनकी राम कहानी भी ख़त्म हो गई .वहीँ अपनी तुलसी मैया आदर्श बहु बनने के बाद कहाँ गईं किसी को परवाह नहीं.जैसे रोनित रॉय ,राहुल रॉय ,अनु कपूर, विवेक मुशरान ,और भी ना जाने  कितने ऐसे लोग रहे होंगे जिनकी पहली फिल्म सुपर हिट हुई परन्तु उसके बाद वे फ्लॉप हो गए .ऐसे उदाहरण समाज के हर क्षेत्र में हर वर्ग में, हर उम्र के लोगों में देखे जा सकते हैं. आखिर क्या वजह है? शानदार शुरुआत होने पर, बेमिसाल सफलता मिलने के वावजूद भी कुछ लोग सफल नहीं हो पाते या यूँ कहिये कि सफलता को आगे नहीं बढ़ा पाते या उसके स्तर को बनाये नहीं रख पाते. 

कुछ लोग कहेंगे कि यह सब तो किस्मत की बात है .परन्तु मेरे ख्याल से किस्मत के अलावा भी कुछ बातें है जो सफलता टिकाये रख पाने में बाधक बन जाती हैं. गौर फरमाइयेगा – 

– असल में किसी भी व्यक्ति की  सफलता में वह व्यक्ति अकेला नहीं होता , प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बहुत से लोग शामिल होते हैं और कई बार इन्हीं लोगों के सहारे वह सफलता पा जाते हैं परन्तु उसके बाद उन सहारों  की कमी या अनुपस्थिति में वे उसी गति से आगे नहीं बढ़ पाते .
– हम अपनी मेहनत और लगन से जब एक जगह पर अपना स्थान बना लेते हैं तो बाकी लोगों की  हमसे उम्मीदें बढ़  जाती हैं. वह हमसे उससे अच्छा और अच्छा करने की उम्मीद करते हैं और उन उमीदों पर हमेशा खरे ना उतरने के एवज़ में हम वह स्थान गँवा देते हैं.इसका मतलब यह नहीं कि सफलता पाने के बाद हमारे गुण कम हो जाते हैं बल्कि निरंतर अपने आपको और ऊँचा उठाने और लगातार अपने को बेहतर बनाने का गुण हममे नहीं होता और इसी कारण जिसमें यह गुण होता है वह हमसे आगे निकल जाता है .और दुनिया का दस्तूर है कि चढ़ते सूरज को ही सलाम करती है.
– कई बार सफल व्यक्ति में घमंड पैदा हो जाता है और इस कारण वह दुसरे किसी भी व्यक्ति को अयोग्य समझ लेता है.उसके गुणों और खूबियों से सीखने की बजाय वह उन्हें नकार देता है . उसकी यह प्रवृति उसे कुछ भी नया और अच्छा सीखने से रोकती है और वह जल्दी ही अपनी पाई सफलता से नीचे आ जाता है.
– इंसान गलतियों का पुतला है और कोई ना कोई गलती उससे हो ही जाती है हमेशा एक जैसा परफोर्मेंस  देना सम्भव नहीं होता और कई बार सफलता के बाद कुछ एक असफलताओं का सामना करने से व्यक्ति में कुंठा और निराशा जन्म ले लेती है और वह  अपना बुद्धि विवेक खो बैठता है परिणाम स्वरुप अपनी सफलता कायम नहीं रख पाता .
– ज्यादातर सफलता के सौपान चढ़ जाने के बाद व्यक्ति अपनी कमियों के प्रति उदासीन हो जाता है और दूसरों की कमियां गिनाने के चक्कर में खुद की  सुधारना भूल जाता है.वह इस मुगालते में जीता रहता है कि बाकी सब बेकार हैं दुनिया में कोई धुरंधर है तो बस वही .और असली दुनिया चलती रहती है ,उससे आगे निकल जाती है,और वह अपने फूल्स पैराडाइज में ही सोता रहता है.
– ईर्ष्या मनुष्य का स्वाभाविक गुण है .ऐसा भी होता है कि आपकी सफलता से जलने बाले बहुतायत में हो जाते हैं और उनकी जी जान से कोशिश रहती है कि वे  आपकी जगह पहुंचे ना पहुंचे परन्तु आपको खींच  खांच कर नीचे ले आया जाये और अगर आप मजबूती से अपनी जगह नहीं पकड़ कर बैठे हैं,आपके पैर धरातल पर मजबूती से नहीं रखें हैं , तो ऐसे तत्व जल्दी ही आपकी टांग पकड़ कर नीचे खींच लाते हैं .
– यह सत्य है कि इस दुनिया में  कुछ भी स्थिर नहीं है सब आना जाना है जो आज आपका है वह कल दुसरे का होगा ही. यह हम सब जानते हैं परन्तु अपनी मेहनत से पाई सफलता कुछ समय तक सहेज कर रख पाना भी हर कोई चाहता है पर कितने लोग सफल हो पाते हैं इस में ?. सफलता पाने से ज्यादा उसे कायम रखना मुश्किल होता  है.कम से कम मुझे तो यही लगता है .आपका क्या ख़याल है?