ब्रिटेन आजकल एक अजीब दौर से गुजर रहा है। हाल ही में, लाखों ब्रिटिश नागरिक लंदन की सड़कों पर अपनी आज़ादी और अधिकार मांगते हुए नज़र आए। उनका कहना है कि उन्हें अपना देश वापस चाहिए, क्योंकि अब यह देश उनके लिए पहले जैसा नहीं रहा। वे महसूस करते हैं कि वे अब अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन गए हैं। वे ऐसे अधिकारों और सुविधाओं से वंचित हैं, जो पहले इस देश के मूल निवासियों का अधिकार हुआ करते थे। अब ये अधिकार उन लोगों को मिल रहे हैं, जो कहीं और से आकर बस गए हैं और जिनका धर्म और संस्कृति बिल्कुल अलग है। उनका यह मानना है कि इन अप्रवासियों को देश से बाहर निकाला जाए और ब्रिटिश नागरिकों को अपनी आवाज़ उठाने, अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार दिया जाए।

इतिहास में एक समय था जब इंग्लैंड ने पूरी दुनिया पर राज किया था। आज इंग्लैंड की राजधानी लंदन में इस प्रकार के प्रदर्शन और ये दृश्य देख कर शायद कई लोगों को अपना इतिहास याद आ रहा है। भले ही परिस्थितियाँ, समय और लोग अलग हों, परंतु परिदृश्य और तरीका वही है। यूँ ही देशवासी अपने देश में घुस आए विदेशियों के प्रभुत्व से आज़ादी की मांग कर रहे थे। वे अपने ही देश में खुद को गुलाम महसूस कर रहे थे और अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे।

लंदन में हुए इस प्रदर्शन को कुछ लोग उचित मानते हैं। उनके अनुसार, यह प्रदर्शन पूरी तरह से सही है। उनका कहना है कि इन अप्रवासियों के अवैध प्रवास के कारण इंग्लैंड की पहचान अब बदल चुकी है। ये लोग नियम-कानून तोड़ते हैं, देश की संस्कृति को नुकसान पहुंचाते हैं, और यहाँ के निवासियों के अधिकारों को छीनते हैं, जिससे स्थानीय नागरिकों का अपने ही देश में जीना मुश्किल हो गया है।

वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह एक नस्लवादी प्रदर्शन है। उनके अनुसार, यह इल्लीगल इमिग्रेशन के नाम पर नस्लवादी मानसिकता को दिखाता है। वे कहते हैं कि जब तक इन  को अपने स्वार्थ के लिए, काम के लिए ज़रूरत होती है, तब तक सब ठीक है। लेकिन जब इन्हें कुछ बाँटना पड़े, तो उनकी असली मानसिकता सामने आ जाती है।

इन प्रदर्शनों के दौरान, ब्रिटेन की राजनीति में भी गहरे विभाजन ने जन्म लिया है। कंजरवेटिव पार्टी और विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। जहाँ कंजरवेटिव पार्टी के नेता अवैध प्रवासन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने का समर्थन कर रहे हैं, वहीं विपक्ष ने इसे एक “नस्लवादी राजनीति” का हिस्सा करार दिया। कुछ आलोचकों का मानना था कि इस प्रकार के प्रदर्शन न केवल अप्रवासियों के खिलाफ हैं, बल्कि यह ब्रिटेन के बहुसांस्कृतिक समाज को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

असल में, ब्रिटेन इस समय गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। महंगाई, बेरोज़गारी आदि की समस्या तो विकट है ही, बेसिक  चिकित्सा व्यवस्था की स्थिति भी बहुत खराब है, और शायद यही कारण है कि अब यहाँ के लोगों का सब्र टूटने लगा है। जो बचा है, वे अब उसे बाहर से आए हुए लोगों के साथ बाँटना नहीं चाहते। उनका मानना है कि उनके पास जो कुछ भी है, वह इन प्रवासियों द्वारा छीन लिया जा रहा है। हालाँकि एक प्रश्न यह भी है कि क्या बगैर अप्रवासियों के इस देश में जीवन कैसा होगा? ब्रेक्जिट के बाद के हालात हम देख ही चुके हैं.

जहाँ तक अवैध प्रवासन की बात है, वह निश्चित रूप से एक वैश्विक समस्या है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है। लेकिन यहाँ मुद्दा सिर्फ अवैध प्रवासन का नहीं, बल्कि एक मानसिकता का भी है, जिसे इस दौर में बिल्कुल भी सही नहीं ठहराया जा सकता। इतिहास गवाह है कि इस प्रकार की मानसिकता हमेशा समाज में बंटवारे और असंतोष को जन्म देती है। यूँ अंग्रेजी में भी तो एक कहावत है ना ! – What goes around, comes around.