अभी हाल ही में स्थानीय समाचार पत्र में एक समाचार आया कि एक दंपत्ति ने अपने बच्चे का एक स्कूल में रजिस्ट्रेशन  उसके पैदा होने से पहले ही करा दिया .क्योंकि उन्हें डर था कि समय पर उन्हें उनके इलाके का और उनकी पसंद का स्कूल नहीं मिलेगा और वो अपनी पसंद के प्रतिकूल  स्कूल में बच्चे को भेजने के लिए विवश होंगे.

 जी हाँ आजकल ये एक ज्वलंत विषय है जो इंग्लैंड  और खासकर लन्दन और इसके  आस पास रहने वाले लोगों को सालता रहता है .आज से पांच  साल पहले तक ये एक ऐसा मुद्दा हुआ करता था जिसपर माता – पिता को सोचने की कतई जरुरत महसूस नहीं हुआ करती थी .बच्चा ५ साल का हुआ तो बस जाकर रजिस्टर  करा दो जिस इलाके में आप रह रहे हैं वहां के सबसे पास के स्कूल में आपके बच्चे का दाखिला हो जायेगा .कोई चिंता नहीं कोई परेशानी नहीं .

पर विगत कुछ वर्षों से हालात गंभीर हो गए हैं .
इंग्लैंड जहाँ ९०% बच्चे पब्लिक (सरकारी ) स्कूलों  में जाते हैं और जहाँ ५ से १६ साल तक सभी के लिए शिक्षा  अनिवार्य है .यहाँ की शिक्षा व्यवस्था के अनुसार आप जहाँ रहते हैं आपका बच्चा उसी इलाके के स्कूल में पढने का अधिकारी है .परन्तु धीरे धीरे स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी. और कुछ खास अच्छी छवि वाले स्कूलों में  अपने बच्चों को पढ़ाने के चाव में माता पिता उसी इलाके में आकर रहने  लगे. 
अब आलम ये है कि स्कूल कम हैं और बच्चे ज्यादा . नियम  के मुताबिक एक क्लास में ३० से ज्यादा बच्चे नहीं हो सकते क्लासों  में सीट नहीं हैं. और इसलिए आप के समीपतम इलाके के स्कूल में जगह नहीं है, तो जहाँ भी जिस स्कूल में जगह है, आपके बच्चे को वहां दाखिला दिया जायेगा और आप उससे इंकार नहीं कर सकते क्योंकि बच्चा अगर ५ साल का हो गया है तो आपको उसे स्कूल भेजना होगा फिर बेशक वो कितना भी दूर क्यों ना हो ..और उसे कैसे भेजना है और लेकर आना है ये भी आपका सर दर्द है क्योंकि आपके रिहायशी इलाके के ही स्कूल में आपका बच्चा पढ़ेगा  इस व्यवस्था के मद्देनजर स्कूल बस नाम की कोई व्यवस्था यहाँ नहीं है.  नतीजा ये कि २-२ घंटे बस से सफ़र करके माता -पिता बच्चों को स्कूल लाने .लेजाने के लिए विवश हैं वो भी अपनी नापसंदगी के स्कूल में भेजने को भी.एक ऐसे देश में जहाँ माता पिता दोनों को ही जीवन निर्वाह के लिए धन कमाना पड़ता है ,उनका सारा वक़्त बच्चों को स्कूल छोड़ने और वहां से लेकर आने में ही व्यतीत हो जाता है और वे कुछ भी और करने के लिए समय नहीं निकाल पाते .वही निशुल्क शिक्षा होते हुए भी एक बड़ी राशि परिवहन  के साधनों में चली जाती है .जाहिर है बच्चों की शिक्षा माता पिता के लिए सरदर्द बनता जा रहा है. 
वैसे तो इंग्लेंड में ५ से १६ साल तक की शिक्षा पूर्णत: निशुल्क है परन्तु अब सरकारी फंड की कमी के चलते स्कूलों से अभिभावकों के चंदा देने की गुजारिश की जा रही है .
कुछ जानी पहचानी व्यवस्था की ओर इशारा नहीं करती ये समस्याएं ? 
शायद भारत में भी शुरू में यही शिक्षा  व्यवस्था थी ..धीरे धीरे सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर  के चलते निजी  स्कूलों का प्रचलन बढ़  गया और आज स्थिति क्या है ये हम सब जानते हैं .
जहाँ तक इंग्लैंड का सवाल है यहाँ भी स्थिति भी मुझे उसी ओर जाती दिखाई दे रही है .जब माता पिता को अपनी पसंद के अनुकूल स्कूल  में बच्चे का दाखिला नहीं  मिलेगा तो वो कोई ओर रास्ता ढूंढेगा
 . इसी राह पर निजी  स्कूल ज्यादा बनने लगेंगे और शिक्षा एक व्यवसाय का रूप ले लेगी. फिलहाल यहाँ के निजी स्कूलों की फीस सिर्फ बहुत उच्च वर्ग की ही क्षमता में है. और धीरे धीरे वही हालात होंगे  जो आज भारत के  है सरकारी स्कूलों में सिर्फ वही बच्चे पढेंगे  जिनके अभिभावक निजी  स्कूलों की महंगी फीस  दे पाने में असमर्थ हैं .
एक समय था जब भारतीय विद्यालयों  में देश विदेश से भारी संख्या में छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे  .कहते हैं वक़्त का पहिया गोल है .
क्या इतिहास फिर से दोहराएगा खुद को ?