चाँद हमेशा से कल्पनाशील लोगों की मानो धरोहर रहा है खूबसूरत महबूबा से लेकर पति की लम्बी उम्र तक की सारी तुलनाये जैसे चाँद से ही शुरू होकर चाँद पर ही ख़तम हो जाती हैं.और फिर कवि मन की तो कोई सीमा ही नहीं है
उसने चाँद के साथ क्या क्या प्रयोग नहीं किये…बहुत कहा वैज्ञानिकों ने कि चाँद की धरती खुरदुरी है ..उबड़ खाबड़ है पर जिसे नहीं सुनना था उसने नहीं सुना और कल्पना के धागे बुनते रहे चाँद के इर्द गिर्द और खूबसूरत कवितायेँ बनती गईं . उन्हीं में से मुझे रामधरी सिंह “दिनकर” की एक कविता बहुत ही पसंद है “
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ” .
ना जाने क्यों बहुत काल्पनिक होते हुए भी ये कविता मुझे बहुत ही व्यावहारिक लगती है .वैसे भी कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर …पर मेरे हिसाब से खाली दिमाग कवि का घर 🙂 (आजकल घर का नेट ख़राब है ना ) तो ऐसे ही कुछ क्षणों में ये मन चाँद तक जा उड़ा और फिर उतरा कुछ इस तरह
उतरा है आज मन
चाँद की धरती पर
चांदनी छिटक उठी है
रूह की खिड़की पर
ख़्वाबों के कदमो को
रखते हौले हौले
मन का पाखी
यूँ कानों में बोले
भर ले चांदनी
पलकों की कटोरी में
उठा शशि और
भर ले झोली में
लेने दे ख़्वाबों को
खुल कर अंगडाई
चन्द्र धरातल पर
तू जो उतर आई
बस और थोड़ी सी हसरत ,
और बस जज़्बा तनिक सा
थोड़ी सी और ख्वाहिश
फिर खिल उठना सपनो का
बस और दो कदम
रख सरगोशी से
कैसे ना होगा फिर
चाँद तेरी हथेली पे.
खूंटी पे टंगे सपने
सपनो पे रख दे चाँद
ना फिसले वहां से चंदा
लगा दे ऐसी गाँठ
🙂 🙂 …बहुत प्यारी कल्पना ….वैसे बेचारा चाँद भी बहुत कुछ महसूस करता है …
सोचता है चाँद
गुमसुम स
बैठा हुआ
सबका
बचपन में मामा
बनाया जाता हूँ
और जवानी में
महबूब नज़र
आता हूँ !!!!!!!!!!
???????:):)
पर यहाँ तो ख्वाबों से ही गाँठ बाँधी जा रही है…बहुत बहुत बहुत खूबसूरत रचना
हा हा हा ..दी! क्या बात कही है …पर आज खुश तो बहुत होगा चाँद ……कोई तो उसका दर्द समझा….:)
चाँद पर डोरे डालता व्यवहारिक इन्सान, … उसके आवरण हटता इन्सान
पर चाँद आज भी जब आसमान पे दिखता है तो उसके विविध रूप कवि के अन्दर विविध ख्याल भी देते हैं , जैसे चाँद ने तुमसे जो कहा और हमने सुना ……. यही है चाँद
to aakhir aap bhi chaand tak phunch hi gayeen di .. bahut achhi hai nazm
उतरा है आज मन
चाँद की धरती पर
चांदनी छिटक उठी है
रूह की खिड़की पर
Kya gazab alfaaz hain! Aur kalpnaakee udaan bhee!!
अरे वाह आज तो चाँद के साथ ही गाँठ लगा ली……………क्या बात है ……………………तो आज चाँद को अपने सपनो मे कैद कर लिया है…………वाह वाह्।
देखा था पानी में डुबकी लगाते चंदा , और सुना था मानव और चाँद का साथ.
पहली बार मुयस्सर हुआ है चाँद को, शरारत भारी खूंटी और ख्वाहिसों की गांठ .
लाजवाब कल्पना शीलता .
खूंटी पे टंगे सपने
सपनो पे रख दे चाँद
ना फिसले वहां से चंदा
लगा दे ऐसी गाँठ
bahut khub!! aapne khali samay me khub chand ko nihara, aur fir shabdo me utar diya……….:)
ये महज कल्पनाशीलता नहीं है, इसमें ऐसा कुछ है जो इसे संश्लिष्ट और अर्थसघन बनाता है। इस कविता की इन पंक्तियों में अर्थदीप्ति देखिए ..
बस और थोड़ी सी हसरत ,
और बस जज़्बा तनिक सा
थोड़ी सी और ख्वाहिश
फिर खिल उठना सपनो का
बस और दो कदम
रख सरगोशी से
कैसे ना होगा फिर
चाँद तेरी हथेली पे.
यहां कविता जिस मात्रा में कला है, उसी मात्रा में जीवन की हसरतें हैं। यह कवयित्री महज लिखने के लिए कुछ नहीं लिखतीं। कम से कम यह कविता तो यही कहती है।
ati sundar
ना फिसले ये चाँद …ऐसी लगा दो गाँठ …
क्या बात है …
जहाँ ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवियत्री ..
कानों में सारी बात चाँद से …
मासूम सुन्दर कल्पना …
वैसे भी कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर …पर मेरे हिसाब से खाली दिमाग कवि का घर 🙂
बहुत सही कहा आपने.:) तभी तो इतनी खूबसूरत रचनाएं जन्म ले पाती हैं. भरे दिमाग में तो पहले से ही अपने पुर्वाग्रह और हलचल चल रही होती है जो कि ऐसी सुकोमल भाव वाली रचनाओं को जन्म नही लेने दे सकती.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
लेने दे ख़्वाबों को
खुल कर अंगडाई
चन्द्र धरातल पर
तू जो उतर आई
हम्म नेट से अवकाश तो बड़ा रास आ रहा है आपको….क्या खूब कविताएँ लिखी जा रही हैं…करो चन्द्र धरातल की सैर…और पढवाती रहो हमें ऐसी ख़ूबसूरत रचनाएं 🙂
वाह मजा आ गया..
कैसे न होगा फिर चाँद तेरी हथेली पे..वाह 🙂
चाँद, सूरज, ऐसे ऐसे ही बाकी सभी ग्रहों पे कवितायेँ लिखिए…हम हैं पढ़ने के लिए 🙂 (jst kidding) 😛
बहुत बहुत सुन्दर कविता 🙂 🙂
बहुत खूबसूरत रचना !
चाँद को गाँठ में बाँध लेने का ख्वाब हमारा भी है।
शिखा जी,
चांद को केन्द्र बनाकर कवियों ने अनेक रचनाए सृजित की हैं….
इसी सिलसिले में चांद को गांठ बांधने की ये कल्पना अपने आप में अभिनव भी है…और खूबसूरत अहसास से रूबरू भी कराती है.
इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं.
uf main to chandiyaa sa gayaa hun aaj….sach….!!!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत खुब जी
Hi..
Badal ke esraar se aage..
Ab chanda ki baari aayi..
Kavita ke mradu ahsaason se..
Hum par lage khumari chhaayi..
Seedhe sachche bhav hain tere..
Shabd madhur teri kavita ke..
Sapnon ke Spandan main fir ek..
Kavita bhav se bhaari aayi..
Ab tak ki sabse bhavpurn kavita..
Wah..
Deepak..
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Deepak..
बहुत खूब। चांद ही है जो 3 लाख 84 हजार 403 किलोमीटर दूर होते हुए भी इंसानों से रिश्ता बनाए हुए है।
दिस इज़ वॉट ब्यूटी कॉल्ड एज…. राइटिंग… ड़ीपिक्ट्स ऑल…. ब्यूटीफुल क्रियेशन … विद ब्यूटीफुल थॉट्स… ब्यूटीनेस… ऑफ़ दिस पोस्ट इज़ वेल डिफाइनड ….. पौनडरिंग…ओवर द ब्यूटीनेस … ऑफ़ द क्रेफ्टिंग … इट इज़ वैरी ट्रू दैट… ब्यूटीफुल थॉट्स विल औल्वैज़ बी जेनेरेट..बाई ब्यूटीफुल पर्सन ओनली… सो, इट इज़ हेन्स प्रूव्ड…….
बहुत उम्दा है जी
बढ़िया कविता दी.. पर कवि का दिमाग भी तो खाली नहीं हो सकता, बस विचारों से भरा ही रहता है हर वक़्त..
भाव विभोर कर दिया ।
उज्ज्वल चन्दा में लगे, कुछ काले से दाग।
क्रोधित सूरज हो रहा, उगल रहा है आग।।
—
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/235.html
काव्य तो उस निर्झर की भांति है जो वर्षा ॠतु में उमड़ पड़ता है, विचारों की तरह।
बहुत सुंदर कविता-शिखा जी।
इसे भी पढिए फ़ूंकनी चिमटा बिना यार-मुहब्बत है बेकार
बहुत सुंदर कल्पना और रचना…!!
चाँद कि ये कल्पना ……बहुत सुन्दर ……लाजवाब रचना .
अच्छी प्रस्तुति।
आभार….
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
A wel imazinaited thought to moon…………..
वाह क्या बात है ……………….बेहद सुन्दर ………..समझ में नही आ रहा क्या लिखूं……..
बहुत खूब , गांठ लगा लो ।
अति सुन्दर रचना…शब्दों और बिम्बों का विस्मय कारी प्रयोग किया है आपने..बधाई…
नीरज
मुझे तो चाँद बहुत अच्छा लगता है…सुन्दर रचना.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे…'
chaand ko har koi apne-apne tareeke se, nazaron se dekhataa hai. isiliye to vo chand hai. aapki kavitaa chaand ke kareeb pahunchatee hai. chaand ke man ko tatolane ki yah koshish sundar hai. badhai. badhai ''pollywood ki apsara'' dekhane ke liye bhi…
chaand par copyright toot raha hai 🙂
waise bahut khubsurat kavita
@ अविनाश ! आपका भी कॉपी राईट है चाँद पर ? 🙂 ..स्वप्निल ने तो अपने राईट उधार दे दिए हैं मुझे हा हा
चांद का वर्णन सुंदर शब्दों मे किया है आपने..बधाई!
शायद ही कोई कवि या शायर होगा जिसने चाँद पर नहीं लिखा हो.. गुलज़ार साहब तो चाँद को रोटी तक गए.. हमने भी कभी बचपन की चव्वनी को चाँद कहा था.. खैर आपकी रचना पर आये तो इस बार शब्द चयन नंबर एक रहे पर ओवर ऑल फ्लो इतना अच्छा नहीं लगा जैसा आप पहले पढवा चुकी है… हमारी आदत खराब भी आपही ने की है.. एक चार्म जो होना चाहिए था इसमें वही मिसिंग है.. बाकी शब्द चयन वाकई कमाल.. और ये पोसिटिव फीडबैक है.. आई होप आप अदरवाईज नहीं लेंगी..
न न! मैं उन्ही की बात कर रहा था, मेरी इतनी हिम्मत की मैं चाँद, चाँदनी, तारे..रात…हरसिंगार, यहाँ तक की जुगनू तक भी जाऊं.
यहाँ शाम का धुंधलका हुआ, शंख बजा, चादर ओढ़ के सो जाता हूँ मैं…चाँद पर लिखना मेरे लिए न तो मुमकिन है न मुनासिब.
🙂 🙂
और मैं तुम ही ठीक हूँ ना? 🙂
बहुत बढ़िया बढ़िया बिम्ब हैं इस कविता में ।
bahut hi khoobsoorat blog badhai
कविता अपने आप में पूरी है
कुछ भी नहीं छूटा है जो इसे अधूरा कर सकें.
यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि किसी विषय पर कोई एक कवि जो स्पेश छोड़ता है उसे दूसरा कवि पूरा करें
मैं बहुत सारे लोगों की टिप्पणी देख रहा था
कविता और टिप्पणियों को पढ़ने के बाद मेरी तो टिप्पणी यह है कि एक बेहतर रचना का पहला और सबसे पहला काम हलचल पैदा करना ही होता है। आपने हलचल पैदा कर दी। जो संवेदनशील होगा उसे हलचल का मतलब समझ में आ जाएगा लेकिन जो नहीं होगा उसे तो यही लगेगा कि कुछ मिस हो गया है।
आपको बधाई
अरे हां… शिखाजी
ब्लाग जगत में भी एक चांद है
और आप उसे अच्छे से जानती है
पुनः बधाई
इसी बहाने चाँद पर उतर ली…वरना तो कलम लिए हम भी कई बार ताक चुके हैं उसे..:)
उतरा है आज मन
चाँद की धरती पर
चांदनी छिटक उठी है
रूह की खिड़की पर
-सुन्दर पंक्तियाँ.
देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी. 🙂
chand viraan nahi aabad hone vaala hai ham sigra hi vas par bastiya banaane vaale hai o2 aur paani to mil hi gaya hai
स्पंदन पर आना और आपको पढना खुद एक सुखद स्पंदन है परदेश मे रहकर भी आपकी संवेदना का फलक काफी व्यापक है…और शिल्प भी दमदार।
कभी समय मिले और सामान्य पढने का मन हो तो आप एक बार मेरे ब्लाग शेष फिर पर आईगा…शायद कुछ आपको पंसद आए।
डा.अजीत
http://www.shesh-fir.blogspot.com
चाँद को लेकर बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति…बधाई. कभी 'शब्द-सृजन की ओर' पर भी आयें…
pyari si rachna…..
mere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega…
http://asilentsilence.blogspot.com/
kisi ek ko itni tarike se likhna
likhne wale ki gahraiyon ko bya karta hai
thank's mam
चाँद की सरजमीं पर उतर कर महसूस की गयी कविता ख्वाहिशों को एक ऐसी सतह पर उतारती है जहाँ कोमल भावनाओं का कलरव गान है| चाँद सदियों से हमारे सपनों का शिखर रहा है और इस स्वप्निल शिखर पर आ कर सपने देखना सुखद सपने जैसा ही है|
चाँद को क्या मालूम की ?चाहता है उसे कोई चकोर
वो बेचारा दूर से देखे करे न कोई शोर ….
यह गीत यद् आ गया आपकी खुबसुरत कविता पढ़कर इत्तफाक से मैंने भी चाँद पर ही अक कविता लिखी है
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति है आपकी
चाँद तेरी हथेली पे.
खूंटी पे टंगे सपने
सपनो पे रख दे चाँद
ना फिसले वहां से चंदा
लगा दे ऐसी गाँठ
चाँद पर इतना कुछ लिखा है लोगों ने … की गाँठो का पुलिंदा बन गया है चाँद … हर कोई अपनी अपनी गाँठ लगाता है …
बहुत मनमोहक लिखा है ….
sundar rachna …dinkar jee kee ye kavita apne yahan inter me lagtee thee…mujhe bhi yah panktiyaan aaj tak yaad hain…
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