*सिर्फ एक पंक्ति फेसबुक की दिवार पर – “मैंने अपनी महिला मित्र को छोड़ दिया. अब मैं आजाद हूँ.” और नतीजा… उस लडकी ने शर्मिंदगी और दुःख में आत्महत्या कर ली.

*एक बच्ची ने फेस बुक पर एक इवेंट डाल दिया .कल उसका जन्म दिन है सभी को आमंत्रण .दूसरे दिन हजारों की संख्या में उसके घर आगे उपहार लिए लोग खड़े थे. माता पिता ने किसी तरह बच्ची को घर से बाहर भेज कर उस भीड़ से छुटकारा पाया.
यहीं नहीं इस जैसे हजारों उदाहरण आजकल रोज देखने में आते हैं.सिर्फ कहीं लिखीं चंद पंक्तियाँ जिन्दगी लेने और देने का सबब बन जाती हैं.और इन सबका जरिया है सोशल नेटवर्किंग साइटें. कौन कहाँ है, किसके साथ है , क्या कर रहा है , क्या खा रहा है , कौन सी पौशाक खरीदी.किसको पाया , किसको छोड़ा सब कुछ सबको पता है.कहीं कोई निजता की जरुरत नहीं.ये सोशल नेटवर्क नाम के जाल ने लोगों को इस कदर घेर लिया है कि उसके बाहर उन्हें दुनिया दिखाई ही नही देती. यश ,अपयश, सफलता ,असफलता,प्रेम, विछोह सब यहीं से शुरू होकर यहीं पर समाप्त हो जाता है.उनके लिए जो यहाँ नहीं है वह इस दुनिया में ही नहीं है.इन्हीं साइट्स पर जोडियाँ बनती हैं, उनकी खुशियाँ भी यहीं मनाई जाती हैं, और सभी घर वाले हों या मित्र यहीं इन्हीं खुशियों में शामिल होते हैं और फिर यहीं रिश्ते टूट भी जाते हैं और यह भी घरवालों को इन्हीं साइट्स पर आये स्टेटस से ही पता चलता है.
गए वक़्त की बातें लगती हैं.जब कहा करते थे कि बेटी के मन के भाव माँ उसकी एक झलक से पहचान लेती है. अब तो उन भावों की थाह पाने के लिए उसे बेटी के फेस बुक या ट्विटर जैसे किसी अकाउंट पर जाना पड़ता है.यूँ बुरा नहीं .एक झलक की जगह एक क्लिक....

सोशल नेट्वोर्किंग – आज के इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सन्दर्भ में एक ऐसा माध्यम जो एक विस्फोट की तरह सामने आया है.और अपने साथ हर एक को बहा ले गया है..आज की नेट उपयोगिता आज से १० वर्ष पूर्व हो रही नेट की उपयोगिता से एकदम भिन्न है.यह एक प्रति व्यक्ति संवाद की ऐसी प्रजनन भूमि तैयार करता है जो इससे पहले कभी संभव नही थी.सोशल नेटवर्किंग हर एक व्यक्ति के लिए है और हर एक के बारे में है. यह मानवीय सामाजिक विकास की वृद्धि में एक क्रांतिकारी कदम है.मानव इतना सामाजिक कभी ना रहा होगा जितना कि अब हो गया है.
फेस बुक, माय स्पेस , ट्विटर,ब्लॉग जैसी नेट्वर्किंग साइट्स ने लोगों को जिस तरह अपनी गिरफ्त में लिया है वह मात्र निजी विचारों के आदान प्रदान तक सिमित नहीं है बल्कि वह किसी भी तरह के अभियान को सफल करने में या उसे पलट कर रख देने में भी सक्षम है. जहाँ एक और अन्ना के अभियान से जुड़ कर ये साइट्स उसे अखिल भारतीय अभियान बना देती हैं. एक ऐसा अभियान जिससे पहली बार इतनी बड़ी संख्या में युवाओं को जुड़ते देखा गया. एक ऐसा अभियान जिसने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया.कोई राम लीला मैदान में अन्ना के साथ हो या ना हो पर इन साइटों पर हर कोई अन्ना की टोपी लगाये दिख रहा था और भले ही हाथ में समोसा पकडे लिखा हो पर स्टेटस पर लिखा था अन्ना के साथ हमारा भी व्रत है.
वहीँ दूसरी और यही सोशल नेटवर्क साइट्स लन्दन में दंगों का कारण भी बनती हैं.ब्लेक बेरी, फेक बुक और ट्विटर में टैग और सीधे सन्देश के माध्यम से पल पल की खबर यहाँ से वहां पहुँचाने की सुविधा ने लन्दन को ३ दिन तक दंगों की भीषण आग में सुलगाये रखा एक ऐसा नजारा जो इससे पहले नजदीकी दिनों में कभी देखा नहीं गया और जिसका अंदाजा तक लन्दन पुलिस को नहीं था.
हालाँकि यह भी सच है कि इस तरह के दंगे या अभियान उस समय भी हुआ करते थे जब कि इन सोशल साइट्स का अस्तित्व नहीं था.लन्दन में हुए दंगे बेशक बढ़ती बेरोजगारी की वजह से हुए हों तब भी उसमें इजाफा करने का और इन्हें फ़ैलाने का कार्य इन सोशल नेटवर्क साइट्स के माध्यम से अवश्य किया गया. जिस तरह तुनेशिया या ईजिप्ट की क्रांति भले ही लम्बे समय से चली आ रही तानाशाही और भ्रष्ट व्यवस्था का परिणाम हों परन्तु उस आग को भड़काने में इन साइट्स पूरा पूरा सहयोग अवश्य कहा जायेगा.
वहीँ लन्दन के पुलिस के सहायक आयुक्त Lynne ओवेन्स के गृह मंत्रालय को दिए गए वक्तव्य के मुताबिक इन्हीं साइट्स की बदोलत पुलिस ने ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट और ओलम्पिक साइट्स पर दंगे होने से रोका. और दंगों के बाद इन्हीं साइट्स की बदोलत ग्रुप बनाकर लोगों ने शहर की सफाई में भी अनुकरणीय योगदान दिया.
इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने युवाओं को तो इस कदर प्रभावित किया है कि आज इनसे अलग उन्हें किसी का अस्तित्व ही नजर नहीं आता. ये साइट्स जहाँ एक और इन युवाओं को इनके व्यक्तित्व, सामाजिक विकास और आत्म विश्लेषण और आत्म कौशल दिखाने के सहज और सरल मौके देती हैं. उतनी ही उनकी हताशा, निराशा और असफलता का कारण भी बनती देखी जाती हैं.जहाँ एक और अकेलेपन से जूझते किसी युवा के सामने दोस्ती और रिश्तों के ढेरों विकल्प ये साइट खोलती हैं तो इन्हीं की वजह से मौत जैसे चरम अंजाम तक भी पहुंचा सकती है..यानि जीना यहाँ ,मरना यहाँ और इसके सिवा नहीं कोई जहाँ..
*अभी लन्दन में कुछ उदाहरण देखने में आये कि एक स्कूल का एक अध्यापक नकली आई डी बना कर इन्हीं सोशल साइट्स पर अश्लील आपत्तिजनक तस्वीरें भेजा करता था इसी क्रम में एक तस्वीर भूलवश अपने एक छात्र को भी भेज बैठा और पकड़ा गया तथा स्कूल से उसे निष्काषित कर दिया गया और मासूम बच्चों का भविष्य बच गया.

*वहीँ कुछ स्कूली छात्रों को कोई एक अध्यापिका पसंद नहीं थी उन्होंने उसे नापसंद करने वालों का एक ग्रुप ऐसी ही एक साईट पर बना लिया और वहां उसी को लेकर छात्रों के विचारों का लेन देन होता है .कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले किसी दिन ऐसे ही तथ्यों के आधार पर उस बेचारी अध्यापिका का स्कूल निकाला हो जाये आखिर मकसद तो छात्रों की संतुष्टि और हित का ही है.यानि कि किसी का भविष्य बनाना / बिगाड़ना हो या सरकार गिरानी हो अब सब कुछ इन्हीं सोशल नेटवर्किंग साइट्स की मेहरबानी पर टिका है.

पूरे ब्रह्माण्ड को एक क्लिक की आवाज पर सामने ला खड़ा कर देने वाली ये सोशल नेटवर्किंग साइट्स मानवीय सोच को भी एक क्लिक तक ही सीमित कर देने की भी क्षमता रखती हैं.जहाँ इनसे बाहर कोई जिन्दगी नजर नहीं आती. बहरहाल तकनीकी क्षेत्र में जब जब भी बदलाव आया है अपने साथ सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू लेकर आया है. सोशल नेटवर्क नाम के इस समुन्द्र मंथन से भी विष और अमृत दोनों ही निकले हैं. अब समस्या यह है कि इस युग में शिव कहाँ से आये जो सम्पूर्ण विष को अपने कंठ में उतार ले और समाज के लिए बचे सिर्फ अमृत.