कितना आसान होता था ना
जिन्दगी को जीना
जब जन्म लेती थी कन्या
लक्ष्मी बन कर
होता था बस कुछ सजना संवारना
सखियों संग खिलखिलाना,
कुछ पकवान बनाना और
डोली चढ़ ससुराल चले जाना
बस सीधी सच्ची सी थी जिन्दगी
अब बदल क्या गया परिवेश
बोझिल होता जा रहा है जीवन
जो था दाइत्व वो तो रहा ही
बहुत कुछ जुड़ गया है उसपर
अब लक्ष्मी ही नहीं
सरस्वती भी बनना है ,
पाक कला छोडो
विज्ञान , अर्थशास्त्र भी पढना है।
अब पैसा संभालना ही नही
उसे कमाना भी है
और तो और उसे भुनाना भी है
हर तरफ उम्मीदें
हर तरफ अरमान
कहाँ जाये वो
कैसे बनाये अपना मुकाम
एक तरफ समाज ,
एक तरफ घर संसार
पति मांगे भार्या, बंदनी
मालिक चाहे समर्पित गुलाम
न छूटे उससे मायका
ना अपनाए उसे ससुराल
अपना ही मन जाने ना
ढूंढे खुद को यहाँ वहां
दो पाटों के बीच में
ये कोमल कली पिस गई है
आज की लड़की
बहुत असमंजस में पड़ गई है.