हथेली की रेखाओं में

कभी सीधी कभी आड़ी सी
पगडंडी पर लुढ़कती कभी
बगीचों में टहलती
बारिश बन बरसती
कभी धूप में तपती
नर्म ओस सी बिछती तो
कभी शूल बन चुभती
झरने सी झरती कभी
नदिया सी बहती रहती
मेज पे रखे प्याले से
कभी चाय सी छलकती.
ग़ज़ल सी कहती कभी
कभी गीतों पे थिरकती .
रातों के गहरे साये में
परछाई सी चलती
कोयले सी जलती कभी
तो कभी राख बन उड़ती
हर पल निगाहों पे पर्दा डाले
धुआं धुआं सी जिन्दगी.