एक मित्र को परिस्थितियों से लड़ते देख, उपजी कुछ पंक्तियाँ 


पढ़ा था कहीं मैंने 

किसी का लिखा हुआ कि

 “शादी में मिलता है 
गोद में एक बच्चा 
एक बहुत बड़ा  बच्चा”.
अक्षम हो जाते हैं जब 
उसे और पालने में 
उसके माता पिता,
तो सौंप देते हैं 
एक पत्नी रुपी जीव को. 
जिसे देख भाल कर ले आते हैं वे 
किसी दूसरे के घर से .
फिर वह पत्नी पालती है, 
उस बड़े हो गए बच्चे को.
झेलती है उसकी सारी नादानियां 
भूल कर खुद को .
लगा देती है सारा जीवन 
उसे संवारने में फिर से. 
खो देती है अपना अस्तित्व 
बचाने के लिए उस बड़े बच्चे का अहम्. 
खुद बन जाती है छोटी 
और होने देती है उसे बड़ा.
वो बड़ा बच्चा होता रहता है बड़ा 
और नकार देता है उसका योगदान 
क्योंकि वो तो छोटी है.फिर 
उसे कैसे बड़ा कर सकती थी वो भला.