इस पार से उस पार
जो राह सरकती है
जैसे तेरे मेरे बीच से
जैसे तेरे मेरे बीच से
होकर निकलती है
एक एक छोर पर खड़े
अपना “मैं “सोचते बड़े
एक राह के राही भी
कहाँ “हम” देखते हैं.
निगाहें भिन्न भिन्न हों
दृश्य फिर अनेक हों
हो सपना एक ,फिर भी
कहाँ संग देखते हैं
रात भले घिरी रहे
या चाँदनी खिली रहे
तारों में ध्रुव तारा कहाँ
सब देखते हैं.
एक एक छोर पर खड़े
अपना “मैं “सोचते बड़े
एक राह के राही भी
कहाँ “हम” देखते हैं.
निगाहें भिन्न भिन्न हों
दृश्य फिर अनेक हों
हो सपना एक ,फिर भी
कहाँ संग देखते हैं
रात भले घिरी रहे
या चाँदनी खिली रहे
तारों में ध्रुव तारा कहाँ
सब देखते हैं.
कुछ उलझे ही सही …पर इस बार साथ में देखेंगे … 🙂
ME se WE ka safar ham bhi mitra ban kar saaath saath dekhenge:)
रात भले घिरी रहे
या चाँदनी खिली रहे
तारों में ध्रुव तारा कहाँ
सब देखते हैं.
बहुत खूब।
बहुत सुंदर……..
"main" se nikal kar jab "ham" ho jate hain to phir hamari drishti sirph ek dekhati hai aur ek sochati hai. main kee mrig-marichika se nikal kar to dekhiye sara vishva apana sa lagega.
तारों में ध्रुव तारा कहाँ
सब देखते हैं………बडी गहरी बात कह दी।
अगर ऐसा होने लगे तो क्या बात है । शिखा जी बहुत ही विचारणीय सुन्दर कविता
सही बात है.. सब अपने-अपने सपने देख रहे हैं..
तभी ज्यादा परेशान भी हैं..
जिन्हें देखना है वे ज़रूर देखते हैं
सारा फलसफा तो आपके चित्र में ही छुपा है | समझने वाली बात तो यही है कि 'ME' का प्रतिबिम्ब जब 'WE' हो जाये तभी दो जीवन आपस में घुले मिले से हो सकते हैं |
सोचा था तुम मुझसे मिल के हम बना दोगे, या मैं तुमसे मिल के हम बना दूंगा, पर ये हो न सका, न तुझमें न मुझमे मैं खो न सका, बात तारों की नहीं रौशनी की है शायद, बात होने के नहीं खोने की है शायद, तुम भी खो न सके और मैं भी खो न सका, तभी तो मैं और तुम मिलकर हम हो न सका
मै और हम तो नदी के दो पाटो की तरह है जो एकसाथ होते हुए भी नहीं मिलते . ध्रुव तारा की अडिगता में कही: "मै " नहीं दिखता. सुँदर कविता.
बहुत ही सुन्दर कविता
मैं हों कि हम देखते दोनों ही ध्रुव तारा हैं।
सारे फसाद कि जड़ बस एक यह "मैं" ही तो है लेकिन जब यही "मै" हम में बदल जाता है तो ज़िंदगी खूबसूरत और आसान नज़र आने लगती है।
एक एक छोर पर खड़े
अपना "मैं "सोचते बड़े
एक राह के राही भी
कहाँ "हम" देखते हैं…
मैं जो इतना बड़ा हो गया है आज … अपनी अपनी राह चलना चाहते हैं सभी … हम बन के भी अकेले रहना चाहते हैं सभी …
बहुत ही बढ़िया। अमित सर ने भी सही बात कही।
सादर
very nice ….
सच कहा…………
सपना भले हो एक…देखते तो अलग अलग ही हैं…..
बहुत सुंदर …
सादर.
मै बनाम हम नहीं मै और मै ही होता है , मै में हम और हम में मैं समाहित होता है तब न मै मै रहा ,और उसने हम बनने कहाँ दिया .
जब यही सच है तब सब कुछ निर्लिप्त हो जाता है . बस दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए . बात दर्शन की नहीं देश ,काल, परिस्थिति , और पात्र,
पर निर्भर करता है .
रात भले घिरी रहे
या चाँदनी खिली रहे
तारों में ध्रुव तारा कहाँ
सब देखते हैं…. ध्रुवतारा वही देखता है, जिसकी चाह हो ….
सुन्दर प्रतिबिम्ब !
सुन्दर प्रतिबिम्ब !
निगाहें भिन्न भिन्न हों
दृश्य फिर अनेक हों
हो सपना एक ,फिर भी
कहाँ संग देखते हैं
बस दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए ,,,,,,,
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि …: किताबें,कुछ कहना चाहती है,….
सुंदर बिम्ब लिए भावपूर्ण रचना
यह रचना हमें सीख देती है कि
जीवन को आबाद करना है तो
“मैं कौन हूँ” इस पहेली को हल कीजिये।
मैं और मेरे-पन के भान से मुक्त हो जाइये
और हम के गुण गाइए।
फिर खुद को ही क्या जग को जीत जाइए।
यह रचना हमें सीख देती है कि
जीवन को आबाद करना है तो
“मैं कौन हूँ” इस पहेली को हल कीजिये।
मैं और मेरे-पन के भान से मुक्त हो जाइये
और हम के गुण गाइए।
फिर खुद को ही क्या जग को जीत जाइए।
साथ देखने के साथ भी नज़रिया अलग अलग ही रहता है …. जब नज़रिया भी एक हो तो पूर्णता आती है …. बहुत सुंदर रचना ॥
bhtreen kvita bdhai
रात भले घिरी रहे
या चाँदनी खिली रहे
तारों में ध्रुव तारा कहाँ
सब देखते हैं!
…बहुत ही सुन्दर अहसास!
बेहद उम्दा भाव सजाये है आपने शब्दो मे …
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – ब्लॉग बुलेटिन की राय माने और इस मौसम में रखें खास ख्याल बच्चो का
मी के वी बनने में खुशियों का सार है , तब और भी बेहतर जब मी और मी मिलकर वी बने !
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने………
वाह…. बहुत बढ़िया….
आजकल सब मैं में जीते हैं, हम कहां हो पाते हैं। तभी तो सभी रिश्ते एक कमजोर डोर से बंधे होते हैं, जरा सी अहं पर चोट लगी नहीं कि बिखर जाते हैं..
बहुत सुंदर प्रस्तुति …बधाई
ध्रुव तारे को देखने वाले कभी दिशाहीन नहीं होते.. बेहद सुंदर भाव संयोजन..
आभार !!
अगर ऐसा कुछ हो जाए तो ..नज़ारा ही बदला सा होगा ..
मैं और हम के भावों अति सुन्दर आवेग !
क्या बात है!!
bahut bahut bahut sundar…hamesha ki tarah
बहुत सुन्दर रचना!
सुंदर अनोखी रचना ….
उत्तरोत्तर देखते रहते हैं हम सब..
"हम" में ही जीवन का सार है.. सुन्दर कविता…
मैं और हम के भावों को ख़ूबसूरती से उतारा है शब्दों में ..बधाई
दृष्टि दोष!
बहुत सुन्दर, बधाई.
बहुत बढ़िया….
यकीनन.. एक बेहतरीन पोस्ट…
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