यूके हिंदी समिति की स्थापना 1990 में हुई थी और इसने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में 35 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इसका हिंदी परीक्षा प्रतियोगिताओं का शैक्षणिक कार्यक्रम 25 वर्ष पहले शुरू हुआ था, इसलिए 6 सितंबर 2025 को इसे मनाने का समय आ गया। इस दिन की शुरुआत इसके संस्थापक पद्मेश गुप्त, सुप्रसिद्ध लेखिका और पत्रकार शिखा वार्ष्णेय और निदेशक सुरेखा चोफला द्वारा दीप प्रज्वलन से हुई। पूरे कार्यक्रम का संचालन निदेशक शशि वालिया और सुरभि वडगामा तथा पूरी प्रबंधन टीम ने बखूबी किया। इस समारोह में भारतीय उच्चायोग की हिंदी एवं संस्कृति अताशे अनुराधा पांडे भी उपस्थित थीं। साथ ही सुप्रसिद्ध लेखिका और वातायन यू.के. की संस्थापक दिव्या माथुर एवं कई वृत्तचित्रों के निर्माता और पूर्व हिंदी कार्यक्रम प्रसारक ललित मोहन जोशी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। यह छात्रों के लिए एक मनोरंजक दिन था। दिन की शुरुआत इंदु बारोट द्वारा संचालित शिक्षक सम्मेलन और फिर विभा शर्मा द्वारा छात्रों के लिए प्रस्तुत शेष कार्यक्रम से हुई। छात्रों ने केबीसी खेला जिसके प्रस्तोता हिन्दी समिति के युवा कार्यकर्त्ता सोम्या और सोनाल थे. प्रतिभागियों ने अच्छे खासे पैसे जीते। 60 छात्रों ने कश्मीर से कन्या कुमारी तक की काव्यात्मक यात्रा में भाग लिया और भारत के प्रत्येक राज्य के बारे में कुछ न कुछ सीखा। अंजना उप्पल द्वारा संचालित छात्रों की वार्षिक हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता भी आयोजित की गई। समापन पर कुछ छात्रों को पुरस्कार भी दिए गए. इस प्रकार भारत से बाहर हिन्दी भाषा की एक नई पीढ़ी तैयार करना और वह भी पूर्णत: निस्वार्थ भाव से, ३५ वर्षों की इस संकल्पना, मेहनत, समर्पण, टीम वर्क और हिन्दी भाषा का उत्सव कल, एक दिवसीय यूके हिंदी समिति महोत्सव के रूप में संपन्न हुआ. १९९० में जो पौधा पद्मेश गुप्त ने रोपा था अब सुरेखा जी के नेतृत्व और उनकी टीम की मेहनत और सहयोग से वह पौधा वट वृक्ष बनने की राह पर है. पांच केंद्र और १०० विद्यार्थियों वाली संस्था आज पचास से अधिक केंद्र (जो पूरे यूरोप और अमरीका में हैं) और ८०० से अधिक विद्यार्थियों की स्थली है. यूके हिन्दी समिति द्वारा आयोजित परीक्षाएं, प्रतियोगिताएं और उनके पुरस्कार अब इतने प्रसिद्ध हैं कि उनमें शामिल होने के लिए छात्र लालायित रहते हैं. आयोजन हॉल खचाखच भरा हुआ था और हर ओर उल्लास का वातावरण था. आखिरी सत्र में यूके हिन्दी समिति के पूर्व छात्र और आज के युवा कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत किया गया एवं संस्था की डायरेक्टर सुरेखा जी का भी आत्मीय सम्मान किया गया. इस अवसर पर कई लोग भावुक होकर अपने आँखों के कौर पोंछते देखे गए. यह कारवाँ यूँ ही चलता रहे.
