कल हमारी बेटी के स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग थी ..,जब हम वहाँ पहुंचे तो देखा कि अजब ही दृश्य था …एक हॉल में कचहरी की तरह लगीं कुर्सी- मेज़ और खचाखच भरे लोग ..आप उसे सभ्य मच्छी बाजार कह सकते हैं .हर पेरेंट को एक -एक विषय के लिए सिर्फ पांच मिनट पहले से ही दे दिए गए थे ..बस अपने समय से जाओ ,सम्बंधित अध्यापक के पास बैठो ..वो पहले से ही होठों पर ३६ इंच की मुस्कान लिए ,५ मिनट की स्पीच तैयार करके बैठा होगा… वो भी सब अच्छा ही अच्छा …यानी कि बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण … बस वो सुनो ..थेंक यू बोलो और आगे बढ़ो…बड़ा मजा आ रहा था…..आजकल स्कूल में अध्यापक शिक्षक कम और कस्टमर केयर के डेस्क पर बैठे ज्यादा लगते हैं.. चेहरे पर मुस्कान और अच्छी अच्छी बातें …कितना भी नालायक हो आपका बच्चा हो पर वो उसमें भी खूबियाँ ढूँढ – ढूंढ कर आपको बताएँगे ..तभी बच्चे खींच खींच कर माता पिता को शिक्षकों से मिलवाने ले जाते हैं कि देखो कितने योग्य हैं हम और एक तुम हो जो घर में डांटते ही रहते हो.और घर आकर उन्हें लाइसेंस मिल जाता है हर वो काम करने का जिनके लिए माता -पिता उन्हें आम तौर पर मना करते हैं
हमें याद आ रहे थे अपने स्कूल के दिन जब साल में १ या २ बार ये पेरेंट्स मीटिंग होती थी …जिसमें कभी माता – पिता जाने को तैयार नहीं होते थे कि कौन लाडलों की बुराइयाँ सुनेगा जाकर , न ही बच्चे चाहते थे कि उनके माता – पिता इन मीटिंग्स में आयें…. त्योरियां चढ़ा हुआ अध्यापकों का चेहरा ,रोबीला स्वर और कितना भी अच्छा छात्र हो उसकी अनगिनत कमियां …कौन चाहेगा यह सब चुपचाप खड़े होकर सुनना.और फिर उनसब के ऊपर घर जाकर फिर डांट खाओ ” मीटिंग के आफ्टर इफेक्ट्स”..२ दिन खेलना बंद , टीवी बंद, गाने बंद, दोस्तों से बात बंद …बाप रे बाप किसे चाहिए ऐसी पेरेंट्स मीटिंग?

कितना बदल गया है परिवेश …पहले आपको शिक्षण संस्थान की जरुरत होती थी आप विन्रम होकर जाते थे कि बराय मेहरबानी आपके बच्चे को दाखिला दे दिया जाये हम फीस भी देंगे ….फिर भी शिक्षकों का स्वर तना ही रहता था एहसान सा करके दाखिला दिया जाता था.और मजाल जो उनकी किसी गलती पर आप चूं भी कर दें …कहीं आपने अपने बच्चे का पक्ष ले लिया या शिक्षक की कोई गलती निकाल दी ….फिर आपका बच्चा उस साल तो पास होने से रहा..
पर अब आपको नहीं बल्कि शिक्षण संस्थान को आपकी ..नहीं सॉरी सॉरी ..आपकी जेब की जरुरत है…जाइये देखिये आपके बच्चे के लायक हैं वो लोग या नहीं ….वो भी पूरी कोशिश करेंगे आपको लुभाने की… इससे अच्छा तो स्कूल हो ही नहीं सकता आपके नौनिहाल के लिए..सारी सुविधाओं से युक्त …आपका लाडला नबाब की तरह जायेगा ..जो मर्जी होगी पढ़ेगा …और मजाल टीचर की कि कम no . दे दे आखिर इतने पैसे किसलिए लेते हैं …भले ही बच्चा घर में रोटी को हाथ न लगता हो पर स्कूल में पूरा लंच न ख़तम करके आये तो अध्यापिका की आफत …दूसरे दिन ही मम्मी जी दनदनाती पहुँच जाएँगी कि आखिर करती क्या है अध्यापिका ? बच्चे को खाना भी नहीं खिला सकती …आखिर इतने पैसे लेते किस बात के हैं …..बहरहाल नाम भले ही उनका शिक्षक रह गया हो पर हालत उनकी किसी फाइव स्टार होटल की आया से ज्यादा नहीं रह गई
ठीक भी है भाई बदलता वक़्त है और उसके साथ परिवेश भी बदलता ही है …अब वो वक़्त शायद दूर नहीं जब अपने लाडलों के लिए महंगे होटल का कमरा बुक कराया जायेगा ….वहां वो आराम से पसर कर कुछ मूड हुआ तो पढ़ लेंगे ..एक एक करके टीचर आयेंगे और उनमे स्किल हुआ तो बच्चे को सोते सोते भी पढ़ा लेंगे ..आखिर उन्हें पैसे किस बात के मिलते हैं….और जों नहीं पढ़ा पाए तो बेकार… रास्ता नापो जी ..कोई और आएगा.ज्यादा लम्बी मुस्कान वाला ….