हमारे समाज को रोने की और रोते रहने की आदत पढ़ गई है . हम उसकी बुराइयों को लेकर सिर्फ बातें करना जानते हैं, उनके लिए हर दूसरे इंसान पर उंगली उठा सकते हैं परन्तु उसे सुधारने की कोशिश भी करना नहीं चाहते .और यदि कोई एक कदम उठाये भी तो हम पिल पड़ते हैं लाठी बल्लम लेकर उसके पीछे और छलनी कर डालते हैं उसका व्यक्तित्व , कर डालते हैं चीर फाड़ उसके निजी जीवन की और उड़ा देते हैं धज्जियां उसकी कोशिशों की.शायद हम देखना ही नहीं चाहते अपने समाज का शर्मनाक चेहरा. क्योंकि अब ऐसे ही उसे देखने की आदत पड़ गई है हमें.क्योंकि अगर वह ऐसा ही नहीं रहा तो हम चर्चाएँ किसपर करेंगे,अपने स्वार्थ के लिए मुद्दे किसे बनायेंगे.या फिर आदत है हमें हर बुराई के लिए नेताओं की तरफ उंगली उठा देने की और जब बात हमारी अपनी या हमारे अपनों की होती है तो नकार देते हैं हम. और उधेड़ने बैठ जाते हैं बखिया उसकी,जो कोशिश करता है आइना दिखाने की.
आजकल एक नया शो टीवी पर शुरू हुआ है “सत्यमेव जयते” – अभी एक ही किश्त आई कि हर तरफ हाहाकार मच गया. शायद बहुतों को अपने चेहरे उसमें नजर आने लगे या फिर भविष्य की किसी किश्त में नजर आने का खतरा मडराने लगा. और हो गई शुरू आलोचनाएँ.
माना कि इस शो का संचालन एक सेलिब्रेटी. मोटी रकम लेकर कर रहा है. तो क्या ? वह अपना काम कर रहा है .क्या उससे उस मुद्दे की गंभीरता कम हो जाती है? क्या बुराई है अगर जनता को एक स्टार की बात समझ में आती है. पूरी दुनिया स्टार के कपडे , रहन सहन और चाल ढाल तक से प्रभावित हो उसे अपनाती है .तो यदि एक स्टार के कहने से समाज में व्याप्त एक घिनौनी बुराई पर प्रभाव पढता है, उसमें कुछ सुधार होता है तो इसमें गलत क्या है.? आखिर मकसद तो मुद्दे को उठाने का और उसमे सुधार लाने का होना चाहिए ना कि इसका कि उसे उठा कौन रहा है.
तर्क दिए जा रहे हैं कि क्या उसका संचालक खुद इतना संवेदनशील है जितना वो शो के दौरान दिखा रहा है. बात उसके अपने निजी जीवन के संबंधो तक जा पहुंची है. अजीब बात है .यदि कोई अपने निजी जीवन में आपसी सहमति से एक विवाह से तलाक लेकर दूसरा विवाह कर लेता है तो हम उसे बिना जाने समझे असंवेदनशील का तमगा पहना देते हैं. यदि उनकी एक फिल्म में उनके द्वारा कहे गए संवाद गलत थे, तो यह कहाँ का इन्साफ है कि उनके दूसरे कार्यक्रम में कहे गए अच्छे सार्थक संवादों को भी उसी नजर से देखा जाये .
रात दिन जेवरों से लदी- फदी, मेकअप और महँगी साड़ियों में लिपटी पल पल षड्यंत्र रचती सास बहुयों के बेहूदा कार्यक्रमों में करोड़ों खर्चा किया जाये तो किसी को कोई तकलीफ नहीं होती. परन्तु एक गंभीर मुद्दे को उठाने के लिए महंगा कार्यक्रम बनाया जाये तो तो उस पर संवेदनाओं को बाजार में बैठाने का इल्ज़ाम लगाया जाने लगता है.वाह धन्य हैं हम और धन्य है हमारी संवेदनाएं जो लाखों मासूमो की दर्दनाक हत्या से बाजार में नहीं नीलाम होती, बल्कि इस बुराई को हटाने के लिए उठाई गई आवाज़ से बाजार में बिक जाती है.
माना की आमिर खान एक अभिनेता हैं, और वह अभिनय ही कर रहे हैं, कोई सामाजिक क्रांति नहीं लाने वाले परन्तु उनके कार्यक्रम के माध्यम से यदि एक भी दरिंदा इंसान बन पाता है. एक भी माँ की कोख बेदर्दी से कुचलने से बच जाती है तो उसके लिए उनके करोड़ों का खर्चा मेरी नजर में तो जायज़ है.
आजकल एक नया शो टीवी पर शुरू हुआ है “सत्यमेव जयते” – अभी एक ही किश्त आई कि हर तरफ हाहाकार मच गया. शायद बहुतों को अपने चेहरे उसमें नजर आने लगे या फिर भविष्य की किसी किश्त में नजर आने का खतरा मडराने लगा. और हो गई शुरू आलोचनाएँ.
माना कि इस शो का संचालन एक सेलिब्रेटी. मोटी रकम लेकर कर रहा है. तो क्या ? वह अपना काम कर रहा है .क्या उससे उस मुद्दे की गंभीरता कम हो जाती है? क्या बुराई है अगर जनता को एक स्टार की बात समझ में आती है. पूरी दुनिया स्टार के कपडे , रहन सहन और चाल ढाल तक से प्रभावित हो उसे अपनाती है .तो यदि एक स्टार के कहने से समाज में व्याप्त एक घिनौनी बुराई पर प्रभाव पढता है, उसमें कुछ सुधार होता है तो इसमें गलत क्या है.? आखिर मकसद तो मुद्दे को उठाने का और उसमे सुधार लाने का होना चाहिए ना कि इसका कि उसे उठा कौन रहा है.
तर्क दिए जा रहे हैं कि क्या उसका संचालक खुद इतना संवेदनशील है जितना वो शो के दौरान दिखा रहा है. बात उसके अपने निजी जीवन के संबंधो तक जा पहुंची है. अजीब बात है .यदि कोई अपने निजी जीवन में आपसी सहमति से एक विवाह से तलाक लेकर दूसरा विवाह कर लेता है तो हम उसे बिना जाने समझे असंवेदनशील का तमगा पहना देते हैं. यदि उनकी एक फिल्म में उनके द्वारा कहे गए संवाद गलत थे, तो यह कहाँ का इन्साफ है कि उनके दूसरे कार्यक्रम में कहे गए अच्छे सार्थक संवादों को भी उसी नजर से देखा जाये .
रात दिन जेवरों से लदी- फदी, मेकअप और महँगी साड़ियों में लिपटी पल पल षड्यंत्र रचती सास बहुयों के बेहूदा कार्यक्रमों में करोड़ों खर्चा किया जाये तो किसी को कोई तकलीफ नहीं होती. परन्तु एक गंभीर मुद्दे को उठाने के लिए महंगा कार्यक्रम बनाया जाये तो तो उस पर संवेदनाओं को बाजार में बैठाने का इल्ज़ाम लगाया जाने लगता है.वाह धन्य हैं हम और धन्य है हमारी संवेदनाएं जो लाखों मासूमो की दर्दनाक हत्या से बाजार में नहीं नीलाम होती, बल्कि इस बुराई को हटाने के लिए उठाई गई आवाज़ से बाजार में बिक जाती है.
माना की आमिर खान एक अभिनेता हैं, और वह अभिनय ही कर रहे हैं, कोई सामाजिक क्रांति नहीं लाने वाले परन्तु उनके कार्यक्रम के माध्यम से यदि एक भी दरिंदा इंसान बन पाता है. एक भी माँ की कोख बेदर्दी से कुचलने से बच जाती है तो उसके लिए उनके करोड़ों का खर्चा मेरी नजर में तो जायज़ है.
Khud to kuchh karte nahi log , aur kare to sirf hangama khada karte hai….
मुद्दा उठना आपने आप में ही एक बहुत बड़ा कदम होता है!
आपने सही कहा शिखा जी.. मेने भी देखा फेस-बुक पर लोग अमीर खान
साहब कि निजि जिंदगी को इससे जोड़कर देख् रहे हैं… जो कि एक
निहायत ही दुर्भावनापूर्ण क्रत्ये है ये! कोइ आगे आ रहा हे लोग उसके ही पीछे
पड़ने लगते हैं… अगर ऐसी ही सोच रहेगी समाज कि कु-विचारकों कि तो हो लिया
भला इस समाज का जो कि सिर्फ़ कमियाँ ही कमियां देखता है! अमीर साहब का कदम
सराहिनिये है! और समाज कि कुरुतिओन को दूर् करने में सहायक है! जिसका असर राजस्थान
सरकार ने फास्ट -ट्रैक कोर्ट बनाकर दिखा दिया है!
अमीन!
मछली एक बार में हजारों अंडे देती है किसी को पता नहीं चलता!
मुर्गी एक ही अंडा देती है और सारी दुनिया को खबर हो जाती है!!
सही कह रही हो
मैं पूरी तरह सहमत हूं.. दस का दम, कौन बनेगा करोड़पति और राखी का स्वयंवर जैसे कार्यक्रमों के इस युग में कम से कम एक संवेदनशील शुरुआत तो हुई
सही बात है |बात मुद्दा क्या है ,इसकी होनी चाहिए और उसका समाधान क्या है ,इसकी होनी चाहिए, न कि कौन उस मुद्दे कि बात कर रहा है ,इसकी |अब मुद्दा तो गायब है ,किसने उस मुद्दे को उठाया है ये ज्यादा चर्चा का विषय बन गया |
सार्थक आलेख |
प्रश्नों का मर्म देखना होगा, प्रस्तुतीकरण का तामझाम तो होता ही रहेगा।
जो लोग असली सवालों को दरकिनार कर बेकार के सवाल सामने ला रहे है … एक बार देखना चाहिए वो खुद कितने पाक साफ है !
आखिरकार आपको भी लिखना ही पड़ा इस मुद्दे पर 🙂 खैर इस प्रोग्राम को लेकर बातें ही ऐसी हो रही है, कि कोई भी समझदार इंसान अपना नज़रिया लोगों के सामने रखने के लिए व्याकुल हो ही जाता है। आपकी लिखी हर एक बात से सहमत हूँ। सार्थक आलेख….
'सत्यमेव जयते' की पहली कड़ी मैं देख नहीं पाई, लेकिन फेसबूक पर आलोचनाएं पढ़ी. आमिर खान एक अभिनेता हैं और निःसंदेह बहुत ही गंभीर विषय को चुनते हैं, भले उनकी एक दो फिल्म उनकी छवि के हिसाब से अच्छी नहीं थी. सत्यमेव जयते से चाहे वो पैसा कमाए या शोहरत, लेकिन समाज की भलाई में ये सहायक है तो कही से भी उनकी आलोचना उचित नहीं.
किसी भी सामाजिक बुराई को मिटाने की दिशा में पहला कदम होता है , उसके बारे में बात करना , विरोध में आवाज़ उठाना .
यह अच्छा प्रयास है . इसी से पता चलता है –शुरू होते ही देश में जोर शोर से इस मुद्दे पर बात होने लगी . हालाँकि अभी भी बात आमिर और शो पर ज्यादा , असली मुद्दे पर कम हो रही है . लेकिन एक अच्छी शुरुआत तो है .
दहेज प्रथा, स्त्री के विरुद्ध पारिवारिक अत्याचार, अशिक्षा, सामाजिक भेद-भाव, बाल-श्रमिक, बाल-भिक्षुक आदि बुनियादी मुद्दे बरसों से डिस्कशन में आते रहे हैं.. नतीजा (आप निराशावादी कहेंगे) सिफार!! भ्रष्टाचार का मुद्दा बड़ा सामयिक है और एक आंकड़े के अनुसार हमारे जी.डी.पी. के ५०% की राशि तक पहुँच गई है यह राशि.. एक व्यक्ति ने आवाज़ उठायी और नक्कारखाने में उसकी आवाज़ को तूती बना दिया गया!!
एक शख्स गरीबों की ज़मीन हथियाकर उसपर अट्टालिका बनवाता है और साथ में सामाजिक संस्था चलाता है जिसका उद्देश्य गरीबों का पुनर्वास का पुनर्वास है!! अब इतना तो चलता रहता है.. ज़मीन हथियाना उसका धंधा है और पुनर्वास की बात उसकी संवेदना!! जब उन दोनों पत्रकारों के स्टिंग ऑपरेशन पहली बार टीवी पर दिखाए गए थे तब भी क्या लोगों की आँखों में आंसू आये थे???.. ऐसा कुछ सहारा समय पर दिखया गया था क्या.. हमें तो कुछ पता नहीं चला.. हम तो समाचार देखते ही नहीं..
आमिर खां का गुड़ महत्वपूर्ण है और उसके पीछे छिपी संस्था का "नाम".. बाक़ी सब परिवर्तन की मखियाँ खुद ब खुद आ जायेंगीं!!
यह तो ऐसे लग रहा है …..अपनी – अपनी डफली अपना – अपना राग …..!
मुख्य मुद्दे से हट कर लोग आमिर की बात कर अपनी मानसिकता ही दर्शा रहे हैं …. कौन बनेगा करोड़पति में जो करोड़पति बने सो बने पर करोड़ों अमिताभ बच्चन ने कमाए …ये कभी कोई मुद्दा नहीं बना ….
सार्थक लेख … विचारणीय
सहमत हूँ आपकी बात से……………..
सास बहुओं का ड्रामा नहीं इतना ही काफी है…..
अपनी अपनी समझ है……
या नासमझी कहूँ….
सादर.
हर दिन जैसा है सजा, सजा-मजा भरपूर |
प्रस्तुत चर्चा-मंच बस, एक क्लिक भर दूर ||
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.in
whatever he is doing-acting or business-he is doing it wholeheartedly….dats appreciable!
कुछ तो लोग कहेंगें लोगों का काम है कहना ,..
आमिर खान जी का सुंदर सार्थक सराहनीय प्रयास ,…
RECENT POST….काव्यान्जलि …: कभी कभी…..
sahi baat hai Shikha ji mai to aapse sahmat hoon.
मुद्दे पे बात होती रहनी चाहिए … ख़बरों में बना रहे तो समाधान भी निकलता है …
जहां तक आलोचना की बात है … ये तो हमारे मीडिया का मसाला है … जब अन्ना ने लोकपाल की बात की थी तो सारा मीडिया (वैसे आज तक) कहता है की भ्रष्ट लोग कैसे लोकपाल की बात कर सकते हैं … चाहे टीम अन्ना भ्रष्ट है या नहीं .. अगर कोई भ्रष्ट है तो क्या वो लोकपाल की बात नहीं कर सकता …
ऐसे ही ये मुदा बने रहना चाहिए … धीरे धीरे समाज में बदलाव आएगा ..
सहमत हूँ ….ये दुनियाँ एसी ही है ..यही ती चिंता का विषय है … वो घटिया सीरियल न केवल कब्ज़ा जमाए है, उनका क्या उद्देश्य है ,कभी बहस का मुद्दा नहीं बना ….भगवन ही जाने ………!!!!!!! खेर ……..
मैं तो बधाई दूंगी आमिर को ,,,,वो हकदार भी है
इस मुहीम का पूरा समर्थन करता हूँ..पर यदि निकट भविष्य मे इस तरह की कई और विकट बुराइयों जैसे- 'सिर्फ़ अपने पुरुष होने के अभिमान और वासना को पोषित करने के लिए 'बस तीन बार तलाक़-तलाक़-तलाक़' बोल कर किसी निर्दोष की जिंदगी तबाह करना…या अपनी क़ौम की ताक़त बढ़ने के लिए अपनी 'बीवियों' को ज़बरदस्ती 'बच्चे पैदा करने की मशीन' बनने के लिए मजबूर करना…या देश के क़ानून को धता बता कर धार्मिक अदालतों के बेहूदा और उल-जलूल फ़ैसलों को बेकसूर प्रार्थी महिलाओं पर ही थोप देना..या फिर एक समुदाय विशेष के पुरुषों को ४-४ शादी करने की छूट देना..
इन सब के लिए भी अगर अभियान नही चलाया तो इस सब को मात्र एक छलावा कहने से कोई बुद्धिजीवी मुझे ना रोके..!
(समझदार को इशारा ही काफ़ी होता है|)
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संतुलित टिप्पणी है 'सत्यमेव जयते' पर. अभिनेता अभिनेता होता है. और वो समझता है कि कहाँ काम करना है कहाँ नहीं, एक दौर था जब मनोजकुमार देशभक्ति से झड़ी फ़िल्में बनाते थे, या ऐसी फिल्मों ही काम करते थे. आमिरखान ने भी अपना रास्ताकुछ-कुछ वैसा ही बनाया है. इसमें कोई बुराई नहीं. बाजारवाद के दौर में अगर मुद्दे भी बेच कर टीआरपी बढ़ रही है तो यह भी चलेगा. आमिर को भी पता है कि इस कार्यक्रम को पेशकर के उनका नाम होना है, दाम तो मिलेगा ही. मैं इस बात से संतोष कर रहा हूँ कि एक कलाकार अपनी समाजिक भूमिका भी निभा रहा है. लोग इतना भी कहाँ करते हैं. बहरहाल, या सामयिक अर्थपूर्ण हस्तक्षेप अच्छा लगा.
किसी भी अभियान में खर्चे होते हैं … कोई एक आँख खुले , काफी है
कुछ तो लोग कहेंगे की तर्ज पर हर प्रेनेता को आलोचना का पात्र बनना ही पड़ता है . आमिर इसके अपवाद नहीं हो सकते . हर इन्सान अपने कर्मो या कार्यों से अपनी छवि का निर्माण करता है और अगर इससे उसकी आर्थिक आय होती है तो कोई गुनाह नहीं.. अब हमारे देश में वैसे तो कोई आगे बढ़ के पथ प्रदर्शक बनता नहीं ऊपर से जो साहस दिखता है उसके राह में कांटे बोते है . जागरूक आलेख ..
सही कहा ….अगर एक आदमी ..इंसान बन जाए तो …….समझो बदलाव का दौर शुरू हो गया हैं और ये सही वक्त हैं जब आज जागरूकता के लिए ….अगर अब भी ना जागे तो फिर कब जागेंगे ???????????
सही है. हमारा आमिर खान से कोई व्यक्तिगत सरोकार नहीं है. केवल एक कलाकार की हैसियत से हम उन्हें जानते हैं और एक ऐसे कलाकार के रूप में जो अपने काम के प्रति समर्पित है. उनकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में ताक-झांक का हमें कोई हक़ ही नहीं है.
हर हाल में ध्यान सिर्फ मुद्दे पर रहे तो बेहतर है पूरे समज के लिए …..
सही ही कहा है! अच्छा कहा है। बहुत अच्छा किया है।
एक पत्थर तो किसी ने उछाला है शिद्दत से…
करोड़ों लोगों से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए इस तरह के कार्यक्रम आवश्यक हैं…
मुझसे यह प्रोग्राम छूट गया। चर्चा खूब सुनी है। लोगों ने पसंद भी खूब किया है। बहुत से मित्रो ने मुझे देखने की सलाह दी है। इससे तो यही लगता है कि आलोचक गलत हैं। आगे देखता हूँ….
आपने अच्छा लिखा है।
amir khan kare to Mahaan
tasleema nasreen kahey to desh nikalaa
kehaa kaa insaaf haen
blind fan following
आपसे से सौ प्रतिशत सहमत हूँ …..रचना जी न पता क्या कह रही हैं ???
आपकी हर बात से पूर्ण सहमत. सामायिक एवं सार्थक आलेख.
आलेख की मूल भावना से सहमति है। कन्या भ्रूण हत्या से कितने लोग व्यथित हैं लेकिन जब एक प्रसिद्ध अभिनेता इस विषय को उठाता है तो एक बड़े वर्ग पर असर होने की सम्भावना बढ जाती है। प्रसिद्ध लोगों के इस प्रभाव का सदुपयोग समाज के उत्थान में होना ही चाहिये, भले ही वे खुद उतने ठोस न हों। बाकी लोग कितने ठोस हैं – नेता, अधिकारी, समाज?
बात तो आपकी सही है ये, थोड़ा करने से सब नहीं होता
।
फिर भी इतना तो मैं कहूँगा ही, कुछ न करने से कुछ नहीं होता॥
हाँ! मुझे भी कई लोगों के फ़ोन आये और ऑफिस में भी पूछा कि वो प्रोग्रैम देखा कि नहीं? मैं तो टी.वी. ही नहीं देखता… खासकर कोई भी सीरियल टाइप प्रोग्रैम….. वैसे प्रोग्रैम तो नहीं देखा… फ़िर भी ऐसा लग रहा है कि कुछ तो ख़ास रहा होगा… पर मुझे तो आपकी पोस्ट ही ज़्यादा एनालिटिकल लग रही है… किसी भी चीज़ का असर पोस्ट – एनालिसिस में ही पता चलता है.. आपकी पोस्ट तो अच्छी है… अब नेक्स्ट टाइम ज़रूर देखूंगा यह प्रोग्रैम… किस चैनल पर आ रहा है? बहरहाल, या सामयिक अर्थपूर्ण हस्तक्षेप अच्छा लगा. किसी भी अभियान में खर्चे होते हैं … कोई एक आँख खुले , काफी है…. ऐसे ही ये मुदा बने रहना चाहिए … धीरे धीरे समाज में बदलाव आएगा …. सार्थक लेख … विचारणीय…. जागरूक आलेख ..
सही कहा आपने शिखा जी!…जो चीज अच्छी है, उसे अच्छा कहने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए!…आभार!
यही हमारा चरित्र है …
कल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आमिर खान को कुछ बेहतर करने की प्रेरणा अपनी पत्नी किरण से ही मिली है. ये आपको सत्यमेव जयते के title song से पता चल जायेगा…
वैसे एक कहावत है कि जब आपकी आलोचना होने लगे तो समझिये कि आप मशहूर हो रहे है…सुन्दर प्रस्तुति…
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
—
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत – 262308.
Phone/Fax: 05943-250207,
Mobiles: 09456383898, 09808136060,
09368499921, 09997996437, 07417619828
Website – http://uchcharan.blogspot.com/
बच्चियाँ बचे बस ,
उन्हें बचाना गर है मकसद,
तकरीरें तो करनी ही होंगी |
I fully endorse your stand on the topic.There is definitely a positive aspect in raising such issues with the help of a public model.
It is rediculous to peep into the personal life of that icon. But there are certain cynics/ people in society who out of their own frustrated attitude start criticizing even such praiseworthy campaigns only due to the involvment of an icon,in this case Aamir.
सकारात्मक पोस्ट!
आमिर का यह शो कई और मायनों में भी खास था.जैसे इसमें बताया गया कि कैसे शहरों में भ्रूण हत्या की शुरुआत सरकारी अस्पतालों में सरकार के प्रोत्साहन से ही हुई थी.यह जानकारी मुझ समेत कई लोगों के लिए नई थी और सुनकर बडा आश्चर्य हुआ.
ik achchi koshish
विषौ संवेदनशील है। इसके लिए कोई मुहिम चलाए हम उसके साथ हैं।
कार्यक्रम के माध्यम से यदि एक भी दरिंदा इंसान बन पाता है. एक भी माँ की कोख बेदर्दी से कुचलने से बच जाती है तो उसके लिए उनके करोड़ों का खर्चा मेरी नजर में तो जायज़ है.
आपकी बातों से पूर्णतः सहमत , सही बातों के लिए धर्म ,जाति समुदाय, रंग का भेद उचित नहीं .
ओह ये पोस्ट अब तक कैसे मेरी निगाह में नहीं आई थी जी । एकदम सही और सटीक बात है शिखा जी । लेकिन सुकून इस बात का है कि इस बहस तर्क वितर्क से परे शो ने अपनी सार्थकता कम से कम एक सफ़्लता प्राप्त करके तो सिद्ध कर ही दी है । यहां ये एक आदत हो गई है कि लोग मुद्दे को नहीं व्यक्ति को निशाना बनाने में लग जाते हैं ये एक रिवाज़ बन गया है । मुझे तो अगले भागों के प्रसारण की प्रतीक्षा रहेगी
कार्यक्रम के माध्यम से यदि एक भी दरिंदा इंसान बन पाता है. एक भी माँ की कोख बेदर्दी से कुचलने से बच जाती है तो उसके लिए उनके करोड़ों का खर्चा मेरी नजर में तो जायज़ है…
bilkul sahi baat..
….sachai dekhne ke liye man bhi sachhe hone chahiye.. aur aajkal ham jo kuch dekhne samjhne ke aadi ho gaye hai yadi usse pare hatkar kuch dekhta ya ghatit hota hai ho halla machna shuru ho jaata hai lekin kuch din rahta hai kuch bhi ..dheere dheere aage-aage kya ho jaata hai koi nahi jaanta..
bahut badiya prastuti..
आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ शिखा जी ! विडम्बना यही है कि लोग खुद कोई पहल नहीं करना चाहते और समाज में व्याप्त हर बुराई और कुप्रथा के प्रति असंवेदनशील हो शुतुरमुर्ग की तरह अपना चेहरा रेत में घुसाए बैठे रहते हैं ! ना उन्हें कुछ बुरा होता हुआ दिखता है ना सुनाई ही देता है, लेकिन अगर कोई अन्य व्यक्ति इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहता है तो सब अपने-अपने हथियारों को भांज कर उसके पीछे पड़ जाते हैं और पहला वार उसके निजी जीवन और चरित्र पर ही किया जाता है कि उसे इस विषय पर बोलने का नैतिक अधिकार है भी या नहीं ! आमिर खान का यह कार्यक्रम काबिले तारीफ़ है और निसंदेह रूप से इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि अभी भी भारतीय जनमानस को अभिनेता अभिनेत्रियों की कही बातें देव वाक्य के समान लगती हैं ! भारत से पोलियो उन्मूलन के लिये अमिताभ बच्चन के सफल और प्रभावी विज्ञापन, 'दो बूँद ज़िंदगी की', को भी बहुत सारा श्रेय दिया जा सकता है !
इस बात से फर्क तो पड़ता ही है कि कौन सी बात कौन व्यक्ति कह रहा है। आमिर खान जिस मंच से जो बात कह रहे हैं, वे बतौर एक्टर नहीं, बल्कि एक नागरिक की हैसियत से कह रहे हैं। और संयोग से उनका सोच और व्यक्तित्व विवादास्पद नहीं रहा है। अब तक मैंने उन्हें किसी भी पुरस्कार वितरण समारोह में नहीं देखा है,जहां बाकी नामी गिरामी स्टार हद दर्जे की नीच हरकतें करते नजर आते हैं।
रहा पैसों का सवाल तो यह कार्यक्रम खुद आमिरखान ने बनाया है, उसे बनाने में पैसा तो खर्च हो ही रहा होगा। और अगर तीन करोड़ के खर्च पर यह संदेश तीन करोड़ लोगों तक भी पहुंच रहा है तो सस्ता है। वरना तीन करोड़ लोग आंसू बहाऊ ड्रामे देखकर ही सो जाते हैं।
कार्यक्रम बहुत अच्छा बना है,इसमें कोई दो मत नहीं हैं।
पर इसमें आंसू बहाने वाले दृश्यों की भरमार नहीं होनी चाहिए।
आपका ये आलेख और अनुराग जी का आलेख मोहल्ला लाईव पर..उन्हें पढ़ना चाहिए जिन्हें इस प्रोग्राम से दिक्कत है…
एक तो इतना अच्छा, संवेदनशील कार्यक्रम शुरू हुआ है और उसपर भी लोग तरह तरह के इलज़ाम लगाते नहीं थकते..
बिना कोई टिप्पणी पढ़े अपने विचार रख रही हूँ …
कार्यक्रम के कांसेप्ट, उसके उद्देश्य से शायद ही कोई असहमत हो !
एक संवेदनशील मुद्दे पर कार्यक्रम बनाया जाए और एक सेलिब्रिटी के कारण उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है , तो तो ऐसे कार्यक्रम जरुर बनाये जाने चाहिए !
मगर यह एक कार्यक्रम है जिसमे आमिर खान सिर्फ एक अभिनेता(एंकर ) है , फिर मीडिया द्वारा उन्हें एक जबरदस्त वास्तविक हीरो की तरह पेश किया जा रहा है , ज्यादा लोगों को इस पर आपत्ति है . यदि वे अपने वास्तविक जीवन में भी हीरो ही होते तो उनके महिमामंडन में कोई कोई हर्ज़ नहीं था .
शो का संचालक समस्या तो सही उठा रहा है इसमें तो किसी को भी शक करने की गुन्जाईस नहीं है. और जब मुद्दे उठेंगे तो कुछ लोगों के पेट में दर्द होना भी कोई हैरानी की बात नहीं.
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना….
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
मेरे देश के लोग बहुत भोले हैं…
जय हिंद…
आज के दिन हर मां को नमन!
जिस दिन इस सीरियल में बहुपत्नीत्व पर बात आएगी उस दिन इस पोस्ट को पढ़ूंगा।
आज के दिन यह आंकड़ा –
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था “सेव चिल्ड्रेन” ने “स्टेट ऑफ द वर्ल्ड मदर्स – 2012” नामक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि
भारत में प्रति 140 महिलाओं में, से एक महिला बच्चा जनते समय मौत का शिकार हो जाती हैं। 2010 में यह आंकड़ा 220 में से एक का था। इसको दूसरे ढंग से समझें तो जहां दो साल पहले एक लाख में से 450 माएं जचगी के समय अपना जीवन गंवा बैठती थीं अब यह बढ़कर 715 हो गया है। चीन में यह आंकड़ा 1500 में एक का या एक लाख में 67 का तथा श्रीलंका में 1100 में एक का या एक लाख में 91 का है।
एकदम सही और सटीक बात है शिखा जी ।
आमिर खान जी का सुंदर सार्थक सराहनीय प्रयास है…….. निसंदेह रूप से इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
आलेख हमें चिंतन करने पर विवश करता है।
प्रश्न ये नहीं है कि मुद्दे को किसने प्रस्तुत किया? प्रश्न ये है कि उसने जन मानस को कितना प्रभावित किया? हम अपने ब्लॉग पर भी लिखते हें और अखबारों और पत्रिकाओं में भी ये बराबर लिखा जा रहा है लेकिन क्या पूरा देश इस तरह से एक साथ जागृत हुआ? अगर इतनी भयानक समस्या को इतने प्रभावी ढंग से लोगों में लाया जा सकता है तो आमिर क्यों नहीं? कौन कितने पैसे खर्च कर रहा है? करोड़ों के घोटाले हो रहे हें उससे क्या जन हित हो रहा है या हुआ?
लोगों के कहने के लिए कुछ चाहिए , अगर हमें इससे समाज में जाग्रति आती दिख रही है तो इसे हम सार्थक पहल ही कहेंगे.
मुद्दे अहम हैं और सही भी पर यह मुद्दे इतने दिनों से इतने अहम बने हुये हैं की अब हम इनकी अहमियत के आदि हो चुके हैं – जैसे नाक बदबू की आदि हो जाती है। इन मुद्दों पर सत्यमेव जयते भी अंततः हार जाएगा शायद लेकिन फिर भी एक सार्थक प्रयास तो है ही कम से कम आईपीएल टीम खरीदने से अधिक।
धन्यवाद आपकी टिप्पणी के लिए मेरे ब्लॉग पर।
jahan dekho satya mev jayye ki baat ho rahi hai, lekin uske vishyon ki kahin koi charcha nahin,
awaj uthane wale ki charcha na karke un vishyon ki charcha kare ti thik rahega, amir khan ka bhi yahi kehna hai ki mere bare mein bat na karein , mein jo kehna chahta hoon use sunein………..
This comment has been removed by the author.
i totally agree with you!
Aamir Khan chahta toh aur stars ki tarah quizshow ya dance show judge banke paise kama sakta tha..bt agar woh acche cause ko promote karne ke liye apna stardom use kar raha hai and paisa le raha hai roh buraai kya hai…2. auron ki tarah sirf issue discuss nai kar raha uske solution bhi de raha hai… coin ka dono side dikha raha hai… he is doing pure journalism jo unfortunately bht kam journalist karte hain… aapke iss article se main 100% agree karti hun.. very nice topic…
and for people jo Aamir ko discuss karne ko priority dete hain, unhe main bolungi, procedure ka discuss karkte hue agar intentions, issue and solution ko priority denge toh shayad hum apna bit kar paayenge society ke liye…..
कहीं भी सुधार की ज़रा सी रौशनी दिखी नही कि कुछ स्थापित लोग
ज्यादा से ज्यादा अंधकार फैलाने लगते हैं…उन्हें व्यवस्था के सुधार में
लेशमात्र भी इन्टरेस्ट नहीं…जो खुद प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से इन बुराइयों
में शामिल है, बुराइयों के उचित-अनुचित लाभ उठा रहे हैं और बुराइयों
को किसी भी कारण वश बनाए रखना ही चाहते हैं…फिर उनका सामाजिक
'अहम' भी इस बाबत संकट में पडता उन्हें नज़र आता है…
आपने सच ही कहा है कि इन प्रोग्रामस् से अगर कुछ व्यक्तियों की दरिंदगी
में कुछ कमी आती है तो वह भी बहुत है…
शिखा जी आपके वैसे सरोकार भी और यह आलेख भी सराहनीय …
It’s onerous to find educated individuals on this subject, however you sound like you already know what you’re speaking about! Thanks