स्मृतियाँ …बहुत जिद्दी किस्म की होती हैं..कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़तीं जितना इनसे दूर जाने की कोशिश करो उतना ही कुरेदती हैं और व्याकुल करती हैं अभिव्यक्त करने के लिए. फिर चाहे वह किसी भी रूप में हो.घर में बच्चों को कहानी के तौर पर  सुनाने के रूप में या ,किसी संगी साथी से बाटने के रूप में.कहीं किसी डायरी के किसी पन्ने पर उकेरने या फिर यूँ ही कभी किसी एकांत जगह पर आँखें बंद किये खुद से ही बतियाने के रूप में .सच्चाई यही है कि मनुष्य अपनी यादें और अनुभव किसी ना किसी रूप में बांटना चाहता है .वह चाहता है कि उसने जो अपने अनुभवों से सीखा या जाना उसे दूसरों तक भी पहुंचा सके.और ऐसा करके उसे एक सुकून और आत्म संतुष्टि की अनुभूति शायद होती है.
साल २०११ बहुत कुछ सिखा कर गया ..बहुत कुछ पाया, बहुत से सपने देखे और फिर उन्हें पूरा होते भी देखा.स्मृतियों को खंगालने का मौका भी मिला और शिद्दत से मिला. एक ऐसा मंच भी जहाँ उन्हें बांटने से सुख भी मिला और सुकून भी और ना जाने कब यूँ ही यादों को बांटते बांटते राहें बनती गईं ,और स्वप्न रथ यथार्थ की धरती पर उतरता गया. उस रथ को खींचने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत लोग थे,जिन्होंने उसे निरंतर गतिमान बनाये रखा,  वह स्मृतियाँ अनवरत बहती रहीं और अब इस साल के जाते जाते एक खूबसूरत प्रत्यक्ष रूप में अवतरित हो गईं .
इस ब्लॉग पर वक़्त वक़्त पर स्पंदित होती मेरी स्मृतियों की माला के कुछ पुष्प आप सब देख चुके हैं.और सम्पूर्ण माला एक पुस्तक के रूप में आ चुकी है.आज आप सबके सामने मुझे वह पुस्तक रखते हुए सुखद  एहसास हो रहा है.कुछ ही समय पहले इसी साल मार्च में एक पोस्ट के दौरान इसी पुस्तक को इस साल के अंत तक आपके हाथों में सौंपने का वादा किया था मैंने. और अब आप सबकी दुआओं से वह वादा पूरा कर पा रही हूँ. इस तरह के अवसरों पर अक्सर लोग कुछ स्टीरियो  टाइप शब्द बोलते देखे जाते हैं ” जैसे धन्यवाद ऊपर वाले का , इसका श्रेय जाता है आप सब को अगर आप लोगों का सहयोग ना होता तो यह नामुमकिन था , मैं आभारी हूँ अपने परिवार वालों के सहयोग का .आदि आदि” .कितना  नाटकीय सा लगता है ना यह सब? खासकर मुझे तो बेहद हास्यप्रद  लगा करता था. .परन्तु ना जाने क्यों आज हू ब हू यही शब्द कहने का मन कर रहा है.जाने क्यों यही शब्द सबसे सटीक लग रहे हैं.तो इन्हीं शब्दों के साथ अपनी यह पहली पुस्तक “स्मृतियों में रूस ” (प्रकाशक – डायमंड बुक्स नई दिल्ली ) मैं आप सबके समक्ष रखती हूँ .

स्वप्न रथ मेरा
मेरे मन के आउट हाउस में खड़ा था
लग रही थी जंग उसे
अर्जे पुर्जे सब ढीले थे
घोड़े यहाँ वहां फिरते रहते
आवारा से
कसक उठती देख
जब भी नजर पढ़ जाती
पर उसे फिर से इकठ्ठा कर
गतिमान बनाने की
राह नहीं दिखती थी.
फिर अचानक
दिखी एक पगडंडी
मिले कुछ कोचवान
डाला जाने लगा तेल कल पुर्जों में
दिया जाने लगा दाना पानी घोड़ों को
और फिर से चल पड़ा
मेरा अपना स्वप्न रथ.

बीते साल में जितना स्नेह , आशीष आप सभी ने दिया, आने वाले साल में भी बनाय रखियेगा.
हैप्पी न्यू इयर टू ऑल ऑफ़ यू.