एक १४-१५ साल कि लड़की घर में घुसती है ” मोम ऍम आई एलाउड तो गो आउट विथ सम वन” ?अन्दर से चिल्लाती एक आवाज़. दिमाग ख़राब हो गया क्या तेरा? ये उम्र है इन सब कामो की ?पढाई पर ध्यान दो ...यू वीयर्ड मोम आल माय फ्रेंड्स आर गोइंग ..तो जाने दो उन्हें यह हमारा कल्चर नहीं .”ओके ओके…

सफलता पाना  आसान है पर उसे उसी स्तर पर बनाये रखना मुश्किल. शायद आप लोगों ने भी सुन रखा होगा. कुछ लोग मानते होंगे और कुछ लोग नहीं. परन्तु मैं हमेशा  ही इस विचार से १००% सहमत रही हूँ. अपने आसपास ,या दूर- दूर न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण मुझे मिल जाते हैं जिन्हें  देख कर इस विचार की सत्यता…

 . हिंदी समिति के २० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष  में वातायन,हिंदी समिति और गीतांजलि संघ द्वारा दिनांक ११,१२,और १३ मार्च को क्रमश: बर्मिंघम ,नॉटिंघम और लन्दन में  अन्तराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन आयोजित किया गया. जिसका मुख्य विषय था विदेश में हिंदी शिक्षण और इस सम्मलेन में भारत सहित यू के  और रशिया के  बहुत से हिंदी विद्वानों  ने भाग लिया जिनमें अजय गुप्त,…

कभी कभी फ़ोन के घंटी कितनी मधुर हो सकती है इसका अहसास  कभी ना कभी हम सभी को होता है ,  मुझे भी हुआ जब सामने से आवाज़ आई ..शिखा जी ,  आपके संस्मरण को हाई कमीशन द्वारा घोषित लक्ष्मी मल्ल सिंघवी प्रकाशन अनुदान  सम्मान दिया जायेगा. कृपया वक्त पर हाई कमीशन पहुँच जाएँ. लैटर आपको १-२ दिन मे मिल जाएगा ...शब्द जैसे…

इंटर नेट नहीं था तो उसका एक फायदा हुआ | दो  बहुत ही बेहतरीन पुस्तकें पढ़ने का मौका मिल गया. एक तो समीर लाल जी की ”  देख लूँ तो चलूँ ” आ गई भारत से कनाडा और फिर यॉर्क होती हुई. दूसरी संगीता जी की ” उजला आस्मां ” आखिर कार दो  महीने भारत में ही यहाँ वहां भटक कर…

कभी कभी तो लगता है कि हम लन्दन में नहीं भटिंडा में रहते हैं (भटिंडा वासी माफ करें ) वो क्या है कि हम घर बदल रहे हैं और हमारी इंटर नेट प्रोवाइडर कंपनी का कहना है कि उसे शिफ्ट  होने में १५ दिन लगेंगे .तो जी १८ मार्च तक हमारे पास नेट की सुविधा नहीं होगी.और हमारा काला बेरी…

अभी कुछ दिन पहले दिव्या माथुर जी ((वातायन की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष यू के हिंदी समिति) ) ने अपनी नवीनतम प्रकाशित कहानी संग्रह “2050 और अन्य  कहानियां” मुझे सप्रेम भेंट की .यहाँ हिंदी की अच्छी पुस्तकें बहुत भाग्य से पढने को मिलती हैं अत: हमने उसे झटपट पढ़ डाला.बाकी कहानियां तो साधारण प्रवासी समस्याओं और परिवेश पर ही थीं परन्तु आखिर की दो कहानियों  ” 2050…

रोज जब ये आग का गोला  उस नीले परदे के पीछे जाता है  और उसके पीछे से शशि  सफ़ेद चादर लिए आता है  तब अँधेरे का फायदा उठा  उस चादर से थोड़े धागे खींच   अरमानो की सूई से  मैं कुछ सपने सी  लेती हूँ फिर तह करके रख देती हूँ  उन्हें अपनी पलकों के भीतर  कि सुबह जब सूर्य की गोद…

करी खा तो सकते हैं पर सूंघ नहीं सकते . ब्रिटेन में करी का काफी प्रचलन  है. जगह जगह पर भारतीय और बंगलादेशी टेक आउट कुकुरमुत्तों की तरह खुले हुए हैं और यहाँ के निवासियों में करी का काफी शौक देखा  जाता है …पर समस्या तब खड़ी होती है जब उन्हें करी खाने से तो कोई परहेज नहीं पर करी की…

  तू बता दे ए जिन्दगी  किस रूप में चाहूँ तुझे मैं? क्या उस ओस की तरह जो गिरती तो है रातों को फ़िर भी दमकती है. या उस दूब की तरह जिसपर गिर कर शबनम चमकती है. या फिर चाहूँ तुझे एक बूँद की मानिंद . निस्वार्थ सी जो घटा से अभी निकली है. मुझे  बता दे ए जिन्दगी किस रूप में चाहूँ तुझे मैं.…