करवा चौथ – ये त्योहार उत्तर भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.और भई मनाया भी क्यों न जाये आखिर एक महिने पहले से तैयारियाँ जो शुरु हो जाती हैं..शुरुआत होती है धर्मपत्नी के तानो से, कि, देखो जी mrs शर्मा १०,००० कि साड़ी लाई हैं इस बार, सुनो जी पड़ोसन को उसके पति ने नये झुम्के दिलाये हैं ,पर यहाँ तो किसी को कदर ही नहीं है, कोइ जिये मरे इन्हें क्या…….और इस तरह रो धो कर एक नई साड़ी तो आ ही जाती है।
फ़िर शुरु होता है सिलसिला पार्लर का, अरे शादियों के मौसम में भी ऐसी रंगत कहाँ देखने को मिलती है यहाँ, जितनी इस दिन होती है। अब भाई वो भी तो अपनी दूकान खोल कर बैठे हैं न अब व्रत के दिन हम उनका ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? और होता है नख से शिख तक का श्रृंगार, गोया करवा चौथ न हुई सुहागरात हो गई। हाँ आखिर शाम की पूजा के वक़्त सौन्दर्य प्रीतियोगिता जो होनी है॥खैर बन- संवर कर पूरे तन- मन से होती है पूजा।
और इंतज़ार शुरू होता है चाँद का तो वो महाशय भी पूरे भाव में होते हैं उस दिन। अब समय से निकले तो निकले और जो बादलों ने ढक लिया तो इन्टरनेट है ही वहीँ दर्शन करके अर्क दे देंगे, नहीं तो शादी के बाद पति देव का सर क्या किसी चाँद से कम हो जाता है? उसी को देख व्रत तोड़ लेंगे,आखिर रखा तो उन्हीं के लिए है न। संम्पन्न होगी पूजा और चरण स्पर्श होगा पति परमेश्वर का.आखिर हर गधे का दिन आता है,तो जी कुछ भोले भाले मनुष्य तो फूल कर कुप्पा, गाल लाल हो जायेंगे कान कि बेक ग्राउंड में गाना बजने लगेगा “पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही”और बीबी बुदबुदा रही होगी “अब आगे भी आओ या वहीँ खड़े रहोगे ,एक काम ढंग से नहीं कर सकते”.और कुछ पति देव मन ही मन बुदबुदायेंगे ” हाँ हाँ ठीक है जल्दी ख़तम करो अपना ये सब, खाना खाएं फिर कल काम पर भी जाना है”(आज तो जल्दी मिल गई छुट्टी मजाल किसी बॉस कि जो मना कर दे आखिर उसे भी तो अपने घर जाना है.)
और बारी आती है खाने की . तो जी आजकल कुछ पति- गण भी पत्निव्रता होने कि इच्छा रखते ,हैं वो भी अपनी अर्धांगिनी के साथ व्रत रखते हैं, ….हाँ जी ! क्या बुरा है? वेसे भी कौन तीनो टाइम ठीक से खाना मिलता है?सो एक वक़्त भूखे रह कर पत्नी प्रेम जाहिर हो जाये तो कौन बुरा सौदा है।और फिर सारे साल के ताने से भी निजात कि “तुम्हारे लिए पूरे दिन निर्जल व्रत करते हैं ,तुम क्या करते हो हमारे लिए? “सो भैया अब ये सुकून तो रहेगा।
खैर अब जब दोनों ने व्रत रख लिया तो खाना कौन पकायेगा?ये मरी बाइयां भी छुट्टी ले लेती हैं।सो जी भला हो इन हल्दीराम सरीखे लोगों का।बहुत पुण्य मिलेगा इन्हें. पर रेस्टोरेंट में पैर रखने कि जगह शायद न मिले पर जैसे भी हो घुसघुसा कर कुछ ले ही आयेंगे पति -देव अपनी प्रिया के लिए.और इस तरह करवा चौथ की कथा में जेसे सांतवी बहन अपने पति को सकुशल लौटा लाई थी ,उसी तरह आज कि पतिव्रता पत्नी भी खिला पिला कर पतिदेव को सकुशल घर ले आती है.और संपन्न होता है ये पवित्र त्यौहार.बोलो करवा चौथ माता कि जय……………….