सोमवार को भारत के लिए निकलना है. सो तैयारियों की भागा दौडी है.एक्साइमेंट इतनी है कि कोई बड़ी पोस्ट तो लिखी नहीं जाने वाली. इसलिए दौड़ते  भागते यूँ ही कुछ पंक्तियाँ ज़हन में कुलबुलाती रहती हैं.सोचा इन्हें ही आपकी नजर कर दूं ,तब तक, जब तक हम दिल्ली ,मुंबई आदि से घूम कर एक महीने बाद वापस नहीं आ जाते .तो आप मुलाहिज़ा फरमाइए .हम मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद….

रात की रानी 
निशा की थपकियों से 
जो स्वप्न उभरते हैं
ऊषा की लोरियां उन्हें 
फिर से सुला देती हैं.
तो क्या फर्क पड़ता है 
रात की रानी भी तो 
रात को ही खिलती है.

टूटता तारा.
वो देखो आसमां में, 
अभी अभी कुछ चमका है.
मेरी उम्मीद का तारा, 
शायद वहीँ टूटा है
पर मैं भी ढीट  हूँ 
उसी टूटते तारे से 
फिर कोई ख्वाहिश कर लूंगी .



नियम 
ऊपर की ओर उछाली हर चीज़ 
नीचे आ जाती  है
कहीं मिले न्यूटन,तो कहूँ कि
गुरुत्त्वाकर्षण  का नियम बदल दें
क्योंकि
मैंने जो अपने ख्वाब उछाले हैं ऊपर ..
उन्हें तो अब गिरने नहीं दूंगी नीचे