फरवरी के महीने में ठंडी हवाएं, अपने साथ यादों के झोकें भी इतनी तीव्रता से लेकर आती हैं कि शरीर में घुसकर हड्डियों को चीरती सी लगती हैं.फिर वही यादों के झोंके गर्म लिहाफ बनकर ढांप लेते हैं दिल को, और सुकून सा पा जाती रूह. कुछ  मीठे पलों की गर्माहट इस कदर ओढ़ लेता है मन कि पूरा साल जीने का हौसला सा हो आता है.यादों के सागर में डुबकी लगाता मन पहुँच जाता है अतीत की गलियों में और चुरा लाता है कुछ मोती .चलचित्र की भांति उमड़ने घुमड़ने लगते हैं कुछ चित्र,कुछ बातें, कुछ सन्देश, जो जाने कब अनजाने ही मन के अंतस में समाते जाते हैं और पता भी नहीं चलता.
सकारात्मक नजरिया एक ऐसा तत्व है जो किसी भी परिस्थिति को बदलने की ताक़त रखता है.शायद यही वजह कि आज किसी को किसी काम के लिए यह कहते देखती हूँ कि संभव नहीं तो मुझे कुछ अजीब सा लगता है.क्योंकि असंभव शब्द तो था ही नहीं उनके शब्दकोष में.  अक्टूबर  – नवम्बर में एक महीना हमेशा हमारे परिवार के लिए पर्यटन का हुआ करता था.और उसका कार्यक्रम बहुत पहले  ही बन जाया करता था. ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान इसी अवधि में एक बार करवा चौथ का त्यौहार पड़ रहा था. और उस तारीख को हमें रामेश्वरम में होना था. मम्मी कुड – कुड़ा रही थीं …वहां कहाँ पूजा होगी, कैसे

प्रसाद  बनेगा.वगैरह वगैरह .पर जैसे कोई सुनना ही नहीं चाहता था.पापा के पास हर बात का जबाब था ..क्यों क्या रामेश्वरम में इंसान नहीं होते? या वहां चाँद नहीं निकालता? और जब श्री राम वहां शिवदेव  की पूजा कर सकते हैं तो तुम पतिदेव की क्यों नहीं कर सकतीं ??? और अर्घ देने के लिए पानी की भी कमी नहीं पूरा समुंदर है. बेचारी मम्मी आखिरी अस्त्र फेंका उन्होंने ..हाँ आप लोगों का क्या जाता है.व्रत तो मेरा होगा मैं तो नहीं खाऊँगी व्रत में इडली डोसा वहाँ.फिर एक जबाब आया …तो क्या वहां क्या फल नहीं मिलते? एक दिन बिना अन्न के गुजारा जा सकता है..आगे सवाल जबाब का कोई स्कोप नहीं था. पता था हर बात का हल निकल आएगा.आखिर वह दिन भी आ गया था. मम्मी ने मन बना लिया था कि वो नारियल के तेल में बना खाना व्रत में नहीं खायेंगी फल खाकर ही रह लेंगी . पापा सुबह ५ बजे ही उठ कर जाने कहाँ टहलने निकल गए थे.रात हुई, चाँद निकला और मम्मी के पूजा ख़त्म करते ही एक फ्लास्क में गरमागरम चाय मौजूद थी.और फिर पास ही रखे एक पैकेट से पूरियों की खुशबू से पता लगा कि सुबह सुबह इन्हीं पूरियों के जुगाड़ में निकले थे पापा. आसपास के हर छोटे बड़े होटल वाले से कहा था कि हम अपना घी का पैकेट और आटा देंगे २०-२५ पूरियाँ बना कर दे दे शाम तक. और उसी से एक चम्मच घी में कुछ आलू छौंक दे  आखिर एक छोटे से टी स्टाल वाला तीन गुनी कीमत पर मान गया था और मम्मी का करवाचौथ विधिपूर्वक मन गया था.”जहाँ चाह वहां राह” की कहावत जैसे उनकी रग रग में समाई थी.और पल पल को सम्पूर्णता से जीना उनकी फितरत.हर दिवस को उत्सव सा मनाने का जज्बा था उस इंसान में और शायद इसीलिए कम उम्र में पूरी उम्र जी लिए वे..
हमारी शादी के दिन से एक दिन पहले जन्म दिन पडा था उनका. जिस देश में बेटी की शादी के दिनों में बदहवास सा हो जाता है पिता .उन्होंने पूर्व संध्या में अपने जन्म दिन की शानदार पार्टी रख डाली थी.शादी की  व्यस्तताओं और रीतिरिवाजों के बवंडर से हटकर एक खुशनुमा माहौल बन गया था विवाह स्थल पर.मैंने भी हंस कर कहा था हमारे तो मजे हैं एनिवर्सरी की पार्टी का खर्चा बच जाया करेगा. पापा की पार्टी में ही हम भी केक काट लिया करेंगे.इसी बीच लोगों से खचाखच भरे हॉल में पापा ने केक काटा था और स्वर गूँज उठे थे ” हैप्पी बर्थडे टू यू.” जो आज भी इको होकर मेरे मस्तिष्क में गूंजते हैं .और फिर हवा में लहर जाते हैं.
हैप्पी बर्थडे पापा.
*तस्वीर – मम्मी पापा कन्या कुमारी में.यह फोटो मैंने ही खींचा होगा :).