लो फिर आ गई दिवाली…
हम फिर करेंगे घर साफ़ मगर
मन तो मेले ही रह जायेंगे .
दिल पर चडी रहेगी स्वार्थ की परत
पर दीवारों पे रंग नए पुतवायेंगे .
फिर सजेंगे बाज़ार मगर
जेबें खाली ही रह जाएँगी .
जगमगायेंगी रौशनी की लडियां
पर इंसानियत अँधेरा ही पायेगी .
आस्था से क्या लेना-देना हमें
पर लक्ष्मी पूजन हम कराएँगे
दिल में द्वेष भावः हो तो क्या,
हम मिठाई बांटने जायेंगे .
क्यों न इन रिवाजों से हटकर ,
इस बार कुछ प्यार बाँटें
कुछ मन चमकाएं
दिवाली तो हर साल मानते हैं
चलो इस साल दीये दिल में जलाएं