काव्य का सिन्धु अनंत है शब्द सीप तल में बहुत हैं। चुनू मैं मोती गहरे उतर कर ऊहापोह में ये कवि मन है। देख मुझे यूँ ध्यान मगन पूछे मुझसे मेरा अंतर्मन, मग्न खुद में काव्य पथिक तुम जा रहे हो कौन पथ पर तलवार कर सके न जो पराक्रम कवि सृजन यूँ सबल समर्थ हो भटकों को लाये सत्य…
दुनिया का एक सर्वोच्च गणराज्य है उसके हम आजाद बाशिंदे हैं पर क्या वाकई हम आजाद हैं? रीति रिवाजों के नाम पर कुरीतियों को ढोते हैं , धर्म ,आस्था की आड़ में साम्प्रदायिकता के बीज बोते हैं। कभी तोड़ते हैं मंदिर मस्जिद कभी जातिवाद पर दंगे करते हैं। क्योंकि हम आजाद हैं…. कन्या के पैदा होने पर जहाँ माँ का…







