लोकप्रिय प्रविष्टियां

जबसे भारत से आई हूँ एक शीर्षक हमेशा दिमाग में हाय तौबा मचाये रहता है “सवा सौ प्रतिशत आजादी ” कितनी ही बार उसे परे खिसकाने की कोशिश की.सोचा जाने दो !!! क्या परेशानी है. आखिर है तो आजादी ना. जरुरत से ज्यादा है तो क्या हुआ.और भी कितना कुछ जरुरत से ज्यादा है – भ्रष्टाचार  , कुव्यवस्था, बेरोजगारी, गरीबी , महंगाई…

ये उन दिनों की बात है जब कैमरा की घुंडी घुमाकर रील आगे बढ़ाई जाती थी। एक क्लिक की आवाज के साथ रील आगे बढ़ जाती थी एक रील में 15 , २३ या ३६ फोटो होते थे… जो कभी कभी एक ज्यादा या एक कम भी हो जाते थे. पूरे फोटो खिंच जाने पर कैमरे की एक टोपी घुमाकर…

हमारे देश में ९० % लोग अपनी आजीविका से संतुष्ट नहीं हैं, उनकी क्षमता और कौशल कुछ और होते हैं, वह कोशिश व काम किसी और के लिए करते हैं और बन कुछ और ही जाते हैं. नतीजा यह होता है कि वे अपने काम से झुंझलाए रहते हैं और इस मजबूरी में अपनाये अपने आजीविका के साधन के लिए किसी न किसी…

एक बेहद दुखद सूचना अभी अभी मिली है कि प्रख्यात हिंदी साहित्यकार डॉ. विवेकी राय का आज सुबह पौने पांच बजे वाराणसी में निधन हो गया है। बीते 19 नवंबर को ही उन्होंने अपना 93वां जन्मदिन मनाया था.  उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यश भारती से भी सम्मानित विवेकी राय जी ने हिंदी में ललित निबंध, कथा साहित्य, उपन्यास के साथ साथ भोजपुरी साहित्य में भी एक आंचलिक उपन्यासकार…

बाबू मोशाय बात ऐसी है कि हमें लगता है, जितने भी त्यौहार वगैरह आज हैं सब इत्तेफाकन और परिस्थिति जन्य हैं। तो हुआ कुछ यूं होगा कि एक परिवार में (पहले संयुक्त परिवार होते थे) किसी की किसी से ठन गई। महीना था यही फागुन का। नए नए टेसू के फूल आये थे। पहले लोग इन्हीं फूलों आदि के रंग…

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