लोकप्रिय प्रविष्टियां

आजकल लगता है हिंदी सिनेमा का स्वर्णिम समय चल रहा है।या यह कहिये की करवट ले रहा है।फिर से ऋषिकेश मुखर्जी सरीखी फ़िल्में देखने को मिल रही हैं। एक के बाद एक अच्छी फिल्म्स आ रही हैं। और ऐसे में हम जैसों के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है क्योंकि फिल्म देखना वाकई आजकल एक अभियान हो गया है.अच्छी खासी चपत लग…

आज से कुछ वर्ष पूर्व जब इस देश में आना हुआ था तब सड़कों में भारी मात्रा में वाहन होने के बावजूद गज़ब की शांति महसूस हुआ करती थी. कायदे से अपनी -अपनी लेंन में चलतीं, बिना शोरगुल के लेन बदलतीं, ओवेरटेक करती गाडियां मुझे अक्सर आश्चर्य में डाल दिया करतीं कि आखिर बिना हॉर्न  दिए यहाँ का यातायात इतना…

कुछ दिन पहले ही मुझे डाक से “प्रवासी पुत्र” (काव्य संग्रह) प्राप्त हुई है. कवर खोलते ही जो पन्ने पलटने शुरू किये तो एक के बाद एक कविता पढ़ती गई और एक ही बैठक में पूरी किताब पढ़ डाली. ऐसा नहीं कि किताब छोटी थी बल्कि उसकी कवितायें इतनी गहन और प्रभावी थीं कि पता ही नहीं चला कब एक…

अरुणा सब्बरवाल जी का नया कहानी संग्रह जब हाथ में आया तो सबसे पहले ध्यान आकर्षित किया उसके शीर्षक ‘उडारी’ ने ।जैसे हाथ में आते ही पंख फैलाने को तैयार. लगा कि अवश्य ही यथार्थ के आकाश पर कल्पना की उड़ान लेती कहानियाँ होंगी और वाकई पहली ही कहानी ने मेरी सोच को सच साबित कर दिया । संग्रह के…

  हमारे पास रविवार शाम गुजारने के लिए दो विकल्प थे. एक बोल बच्चन और एक कॉकटेल .अब बोल बच्चन के काफी रिव्यू पढने के बाद भी हॉल पर जाकर जेब खाली करने की हिम्मत ना जाने क्यों नहीं हुई तो कॉकटेल पर ही किस्मत अजमाई का फैसला किया गया, यह सोच कर ओलम्पिक साईट में नए खुले मॉल का VUE सिनेमा  चुना गया…

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