लोकप्रिय प्रविष्टियां

एक आंटी अंकल आये थे आज बड़ी सी चमचमाती कार में, वह बाते कर रहे थे दीदी से कुछ कागजों पर लिखा पढी भी की  सारा आश्रम देखा बाद में पूछा था उसने, तो दीदी ने बताया था, छोटू को लेने आये है छोटू को पूरा ग्लास दूध मिलेगा, बिना पानी मिला , मलाई वाला. और तीनों वक़्त का खाना भी,…

कल रात सपने में वो मिला था  कर रहा था बातें, न जाने कैसी कैसी  कभी कहता यह कर, कभी कहता वो  कभी इधर लुढ़कता,कभी उधर उछलता  फिर बैठ जाता, शायद थक जाता था वो  फिर तुनकता और करने लगता जिरह  आखिर क्यों नहीं सुनती मैं बात उसकी  क्यों लगाती हूँ हरदम ये दिमाग  और कर देती हूँ उसे नजर अंदाज  मारती रहती हूँ…

जबसे भारत से आई हूँ एक शीर्षक हमेशा दिमाग में हाय तौबा मचाये रहता है “सवा सौ प्रतिशत आजादी ” कितनी ही बार उसे परे खिसकाने की कोशिश की.सोचा जाने दो !!! क्या परेशानी है. आखिर है तो आजादी ना. जरुरत से ज्यादा है तो क्या हुआ.और भी कितना कुछ जरुरत से ज्यादा है – भ्रष्टाचार  , कुव्यवस्था, बेरोजगारी, गरीबी , महंगाई…

विशुद्ध साहित्य हमारा कुछ  उस एलिट खेल की तरह हैजिसमें कुछ  सुसज्जित लोग खेलते हैं अपने ही खेमे में बजाते हैं तालीएक दूसरे  के लिए ही पीछे चलते हैं कुछ  अर्दली थामे उनके खेल का सामान इस उम्मीद से शायद  कि इन महानुभावों की बदौलत उन्हें भी मौका मिल जायेगा कभी एक – आध  शॉट  मारने  का और वह  कह सकेंगे  हाँ वासी हैं वे भी उस  तथाकथित  पॉश  दुनिया के  जिसका — बाहरी दुनिया…

इसके बाद …हम अपने पाठ्यक्रम के चौथे वर्ष में आ पहुंचे थे …..और मॉस्को  अपनी ही मातृभूमि जैसा लगने लगा था .वहां के मौसम , व्यवस्था ,सामाजिक परिवेश सबको घोट कर पी गए थे .अब हमारे बाकी के मित्र छुट्टियों में दौड़े छूटे भारत नहीं भागा करते थे , वहीं  अपनी छुट्टियाँ बिताया करते थे या मोस्को का प्रसिद्द व्…

वीडियो