लोकप्रिय प्रविष्टियां

मैं नहीं चाहती लिखूं वो पल  तैरते हैं जो  आँखों के दरिया में  थम गए हैं जो  माथे पे पड़ी लकीरों के बीच  लरजते हैं जो हर उठते रुकते कदम पर  हाँ नहीं चाहती मैं उन्हें लिखना क्योंकि लिखने से पहले  जीना होगा उन पलों को फिर से  उखाड़ना होगा गड़े मुर्दों को  कुरेदने होंगे कुछ पपड़ी जमे ज़ख्म  और फिर उनकी दुर्गन्ध …

अक्सर हमने बुजुर्गों को कहते सुना है कि ये बाल हमने धूप में सफ़ेद नहीं किये…..वाकई कितनी सत्यता है इस कहावत में …जिन्दगी यूँ ही चलते चलते हमें बहुत कुछ सिखा देती है और कभी कभी जीवन का मूल मन्त्र भी हमें यूँ ही अचानक किसी मोड़ पर मिल जाता है.अब आप सोच रहे होंगे कि किस लिए इतनी भूमिका…

 मैं मानती हूँ कि लिखा दिमाग से कम और दिल से अधिक जाता है, क्योंकि हर लिखने वाला खास होता है, क्योंकि लिखना हर किसी के बस की बात नहीं होती और क्योंकि हर एक लिखने वाले के लिए पढने वाला जरुरी होता है और जिसे ये मिल जाये तो “अंधे को क्या चाहिए  दो आँखें” उसे जैसे सबकुछ मिल जाता है.और इसीलिए…

पिछले दिनों बाजार गई तो १६ वर्षीय एक बच्ची को ढेर सारी अलग अलग तरह की खुशबू  वाली मोमबत्तियां खरीदते हुए देखा। बच्ची मेरी जानकार थी सो मैंने पूछ लिया, अरे अभी तो क्रिसमस में बहुत समय है, क्या करोगी इतनी मोमबत्तियों का?. उसने जबाब दिया कि यह मोमबत्तियां वह अपने स्ट्रेस पर काबू पाने के लिए खरीद रही है. कुछ अलग अलग तरह की खास…

बस काफी भरी हुई है .तभी एक जोड़ा एक बड़ी सी प्राम लेकर बस में चढ़ता है.लड़की के हाथ में एक बड़ा बेबी बैग है और उसके साथ के लड़की नुमा लड़के ने वह महँगी प्राम थामी हुई है.दोनो  प्राम को सही जगह पर टिका कर बैठ जाते हैं. प्राम में एक बच्चा सोया हुआ है खूबसूरत कम्बल से लगभग पूरा…

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