हम पश्चिम की होड़ बेशक करें पर यह सच है कि पश्चिम कहीं से भी कुछ भी अच्छा सीखने और अपनाने में कभी शर्म या कोताही नहीं करता। कुछ भी अपने फायदे का मिले तो उसे खुले हाथों और दिमाग से अपनाना और उसे अपनी जीवन शैली और परिवेश के अनुरूप ढालना तो हमें कम से कम पश्चिम से सीख ही लेना चाहिए। जहाँ अपने ही किसी बेहतरीन कार्य या गतिविधि को हम बे वजह धर्म, जाति, राजनीती और न जाने कैसे कैसे आडम्बरों से जोड़ कर बरबाद कर देते हैं, वहीँ पश्चिम उसे बिना किसी पूर्वाग्रह और कुंठा के अपने हित में अपना लेता है.
योग से योगा तक…
इसका एक साक्षात उदाहरण २१ जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पूरी दुनिया में देखने को मिला। न्यूजीलैंड से लेकर यूक्रेन तक और लंदन से कर ताइवान तक हर देश में महत्पूर्ण स्थानो पर भारी संख्या में लोगों ने इस गतिविधि में पूरे तन मन से भाग लिया।
योगा, यानि योग का उद्गम कहाँ से हुआ इसे सारी दुनिया जानती और मानती है. भारत में जन्मी और विकसित हुई इस विधा का लाभ सदियों से मानव उठाता रहा है. परन्तु तेज और तनाव पूर्ण जीवन शैली के इस दौर में योग का महत्व बढ़ता जा रहा है और पश्चिमी देश इसे अपनी सुविधानुसार खुले दिल से स्वीकार रहे हैं. आपाधापी के इस युग में जहाँ रोज नई बीमारियाँ और उनके इलाज और फिर उन इलाज के साइड एफ्फेक्ट निकल कर आ रहे हैं ऐसे में लोगों को योग एक बिना किसी नुक्सान का इलाज और स्वस्थ्य जीवन की चाबी नजर आ रहा है.
अकेले लन्दन में योगा के औपचारिक – अनौपचारिक अनगिनत केन्द्र हैं जहाँ बिना किसी भेदभाव या दुराभाव के हर धर्म, समुदाय के लोग योग सीखने आते हैं. यहाँ तक कि कई स्कूलों में भी “फिजिकल एजुकेशन” के अंतर्गत अनौपचारिक रूप से योग सिखाया जाता है या उसे करने की सलाह बच्चों को दी जाती है और एशियन बच्चे बड़े गर्व से आकार घर पर बताते हैं कि आज हमारे शिक्षक ने एक नया आसान सिखाया. किसी बिमारी या सर्जरी के बाद मरीज हलकी फुलकी कसरत के तौर पर योगा करते देखे जाते हैं, उनका कहना है कि इससे शरीर को किसी भी तरह का कोई नुक्सान होने का ख़तरा नहीं होता.
*तस्वीर – लंदन में साउथ बैंक पर योग.
यह सच है कि देश काल के साथ हर विधा में कुछ बदलाव आते हैं. ऐसे ही योग भी पश्चिम में आकर “योगा” के साथ साथ बहुत से स्वरूपों में दिखाई देने लगा है.
लन्दन में योग कक्षाओं के अलावा – त्रियोगा, वोगा और डोगा जैसे योग के स्वरुप भी खासे प्रचलित हैं और महंगी फीस के साथ आलीशान जगहों पर पूरी साज सज्जा के साथ चलाये जाते हैं.
त्रियोगा – एक आसन (पोश्चर), प्राणायाम (सांस) और मुद्रा (ध्यान)” के साथ एक हठ योग विधि है।
जिसके, सेलफ्रिजेस के रूफ टॉप रेस्टौरेंट जैसे अनगिनत आलीशान केन्द्र लन्दन में खुले हुए हैं जहाँ शानदार माहौल में त्रियोगा कराया जाता है और इसके साथ ही ताज़ा निकाला हुआ फलों का जूस जैसे लुभावने प्रस्ताव साथ में शामिल होते हैं. यानि गर्मियों में समय बिताने का यह भी एक प्रसिद्द माध्यम है.
वोगा – yoga और vogue का फ्यूजन है. यानि योग के साथ फैशन या प्रतिष्ठा. इसके भी प्रतिष्टित स्थानों में समय समय पर कोर्स चलाये जाते हैं. आलीशान होटलों में टेरेस आदि पर कराए जाने वाले कोर्स किसी लक्जरी गतिविधि से कम नहीं है. जहाँ से शहर के बेहतरीन नजारों को लुत्फ़ उठाते हुए आप योगा करते हैं और इसके बाद उनके इस पैकेज में आप पेय पदार्थ या दोपहर का खाना भी शामिल कर सकते हैं.
कुछ बड़े रेस्टौरेंट छत पर इसके साथ ब्रंच का इंतजाम भी करते हैं जिसके मेन्यू में चाय, कोफी, कॉकटेल के अतिरिक्त अण्डों, फलों और मीठे से लजीज व्यंजन होते हैं.
डोगा – अब जब आप अपने स्वास्थ्य और प्रतिष्ठा के प्रति इतने जागरूक हैं तो भला अपने पालतू जानवरों को इससे वंचित कैसे रख सकते हैं ? आखिर फैशन के साथ स्वस्थ्य और फिट रहने का अधिकार तो उन्हें भी है इसलिए आपके पालतू डॉग के लिए डोगा की कक्षाएं भी चलाई जातीं हैं. “पेट पार्लर” की ही तरह चलाये जाने वाली यह कक्षाएं आपके साथ ही आपके पालतू जानवर को भी योग के आसान करातीं हैं और इनका दावा है कि इससे न सिर्फ पालतू पशु की कसरत होती है बल्कि अपने मालिक के साथ इनका रिश्ता भी मधुर होता है.
कहने का मतलब यह कि इस तनाव भरी जिंदगी में सभी का तनाव रहित रहना अत्यंत आवश्यक है और योगा इस तनाव से जूझने का एक सफल इलाज बनकर पूरी दुनिया में उभर रहा है.
योग एक साधना है जिससे तन और मन एकाग्रचित होकर नियंत्रित होते हैं। इसके गुणों को निश्चित ही वेस्ट में भी लोग समझते हैं।
लेकिन किसी भी विधा या विद्या को जब तक बार बार सामने नहीं लाया जाता , तब तक उसका प्रभाव नहीं पड़ता। इसीलिए विश्व योग दिवस की अहम भूमिका नज़र आती है योग को लोकप्रिय करने के लिए।
आपके लेख में सुन्दर नई जानकारी मिली। आभार
बढ़िया और नई जानकारी देता आलेख। इसे तो शेयर करना पड़ेगा फेसबूक में।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-06-2015) को "योग से योगा तक" (चर्चा अंक-2021) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
अरे वाह…. गज़ब जानकारीपरक पोस्ट है शिखा। ये बहुत बड़ा सच है कि हम पाश्चात्य फैशन का तो अंधानुकरण तो करते हैं लेकिन वहां की दूसरी अच्छी आदतें नहीं सीखना चाहते। जिस दिन हम उनकी इस अपनाने की पद्धति को फॉलो करने लगेंगे उसी दिन इस देश से गंदगी, और अशिक्षा जैसी समस्याएं भी कम होने लगेगीं।
एक बेहद जबरदस्त प्रेरक जानकारी भरी पोस्ट
informative
त्रियोगा, वोग डोगा … सभी मस्त लगे और ख़ुशी भी हुयी की सभी योग से प्रभावित हुए …
अच्छी पोस्ट …
ye to gazab ki jaankari mili didi !
रोचक जानकारी
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Thanks for the sensible critique. Me and my neighbor were just preparing to do some research about this. We got a grab a book from our area library but I think I learned more from this post. I am very glad to see such excellent information being shared freely out there.