प्रिय बेटियों,

पूरी आशा है तुम वहाँ कुशल पूर्वक होगी। हम यहाँ ठीक हैं। तुम्हारी मम्मी भी आ गईं हैं। वह भी ठीक हैं। हम रोज चाय के समय तुम लोगों को याद करते हैं। मम्मी तुम लोगों के समाचार देती हैं। उनकी बातें खत्म ही नहीं होतीं। ऐसा लगता है न जाने कब से नहीं बोलीं हैं।

यह जगह अच्छी है। तुम लोग जहाँ हो वह भी अच्छा है। बाकी तो बेटा सब मन का है। मन के सुख- दुख होते हैं। खुद भले तो जग भला। वह कहते हैं ना, मन चंगा तो कटौती में गंगा। अरे! मैं भी भावुकता में क्या क्या लिख रहा हूँ।तुम भी सोचोगी कि पापा ये क्या मुहावरे की किताब लेकर बैठ गए। तुम्हारे यहाँ तो अभी रात होगी, यहाँ तो सुबह के 4 बजे हैं। तुम्हारी मम्मी के खर्राटों से नींद खुल गई (अब बहुत खर्राटे लेने लगी है। पहले तो नहीं लेती थी)। बाहर पंछियों के कलरव सुन तुम्हारी याद आई तो खत लिखने बैठ गया। तुम लोग भी कभी कभी लिख दिया करो। हालाँकि वहाँ सब अच्छा है, सारी सुविधाएँ हैं फिर भी हाल चाल लिख दोगी तो तुम्हारी मम्मी को अच्छा लगेगा।

चलो अब मैं जाकर चाय बनाऊँ तब तुम्हारी मम्मी को उठाऊँगा। तुम तीनों अपना ख्याल रखना और प्यार से रहना।

तुम्हारा

पापा

(ऐसी ही चिट्ठी लिखा करते थे वे। अपनी हर बात मम्मी के माध्यम से कहते थे और अपनी हर बात का बहाना भी उन्हें बनाते थे। अब फिर से पुरानी प्रेक्टिस में आ गए होंगे न)

मम्मी ने हलवा बनाया होगा आज।

हैप्पी बर्थडे पापा !