वो खाली होती है हमेशा। जब भी सवाल हो,क्या कर रही हो ? जबाब आता है कुछ भी तो नहीं हाँ कुछ भी तो नहीं करती वो बस तड़के उठती है दूध लाने को फिर बनाती है चाय जब सुड़कते हैं बैठके बाकी सब तब वो बुहारती है घर का मंदिर फिर आ जाती है कमला बाई फिर वो कुछ नहीं…
लोकप्रिय प्रविष्टियां
पिछले दिनों एक समाचार पत्र में छपी खबर के मुताबिक एक 16 साल के लड़के को 15 हूडी लड़कों ने चाकू से गोदकर बेरहमी से सरे आम सड़क पर मार डाला . वह बच्चा छोड़ दो , ऐसा मत करो की गुहार लगाता रहा और वे उसे चाकू से मारते रहे। यह इस साल का लन्दन में होने वाला पहला नाबालिक लड़के का खून है , जबकि पिछले साल 17 वर्षीय एक…
बहुत याद आता है गुजरा ज़माना सान कर दाल भात हाथों से खाना। वो लुढ़कती दाल को थाली में टिकाना, गरम गरम दाल में उंगलियां डुबाना, फिर “उईमाँ” चिल्लाकर, रोनी सूरत बनाकर, जली उँगलियों को मुँह तक ले जाना। खूब सारा भात परोस कर लाना, उसमें से आधा भी न खा पाना, मम्मी की नजरों से फिर खुद को बचाकर,…
नवभारत में प्रकाशित क्या पुरुष प्रधान समाज में, पुरुषों के साथ काम करने के लिए,उनसे मित्रवत सम्बन्ध बनाने के लिए स्त्री का पुरुष बन जाना आवश्यक है ?.आखिर क्यों यदि एक स्त्री स्त्रियोचित व्यवहार करे तो उसे कमजोर, ढोंगी या नाटकीय करार दे दिया जाता है और यही पुरुषों की तरह व्यवहार करे तो बोल्ड, बिंदास और आधुनिक या फिर चरित्र हीन .यूँ मैं कोई नारी वादी…
ये मेरा दुर्भाग्य ही है कि अधिकांशत: भारत से बाहर रहने के कारण,आधुनिक हिंदी साहित्य को पढने का मौका मुझे बहुत कम मिला.बारहवीं में हिंदी साहित्य विषय के अंतर्गत जितना पढ़ सके वह एक विषय तक ही सीमित रह जाया करता था.उस अवस्था में मुझे प्रेमचंद और अज्ञेय की कहानियाँ सर्वाधिक पसंद थीं परन्तु और भी बहुत नाम सुनने में आते रहते थे या पत्र…