लोकप्रिय प्रविष्टियां

यूँ देखा जाए तो यह साल  पूरी दुनिया के लिए ही खासा उथल पुथल वाला साल रहा. वहाँ भारत में नोटबंदी हंगामा मचाये रही, उधर अमरीका में विचित्र परिस्थितियों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हो गई और इधर ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से किनारा कर लिया.  हालाँकि रेफेरेंडम के नतीजे आने के तुरंत बाद ही इन्टरनेट पर उसे लेकर पछतावे की…

कहने को तो ये भीड़ है सड़कों पर कदम मिलते लोगों का रेला भर पर इसी मैं छिपी है संपूर्ण जिंदगी किसी के लिए चलती तो किसी के लिए थमती किसी के लिए आगाज़ भर तो किसी को अंजाम तक पहुँचाती इस रेले मैं आज़ किसी के पेरो को लग गये हैं पंख कि नौकरी का आज़ पहला दिन है…

वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि बाँट लुंगी कुछ भीगी बातें। पता चलता कि एक या दो दिन बाद उनका श्राद्ध है। मैं अवाक रह जाती। मुझे देश से बाहर होने…

रहे बैठे यूँ चुप चुप पलकों को इस कदर भींचे कि थोडा सा भी गर खोला ख्वाब गिरकर खो न जाएँ . थे कुछ बचे -खुचे सपने नफासत से उठा के मैने सहेज लिया था इन पलकों में  जो खोला एक दिन कि अब निहार लूं मैं जरा सा उनको तो पाया मैंने ये कि सील गए थे सपने आँखों के खारे पानी से …

कभी देखो इन बादलों को! जब काले होकर आँसुओं से भर जाते हैं, तो बरस कर इस धरा को धो जाते हैं. कभी देखो इन पेड़ों को,  पतझड़ के बाद भी, फिर फल फूल से लद जाते हैं, ओर भूखों की भूख मिटाते हैं. कभी देखो इन नदियों को, पर्वत से गिरकर भी, चलती रहती है, अपना अस्तित्व खोकर भी…

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