मानवीय प्रकृति पर बहुत कुछ कहा और लिखा गया है, लोग बहुत कुछ कहना चाहते हैं…कहते भी हैं..परन्तु मुझे लगता है कि ,इस पर जितना भी लिखा या कहा जाये कभी पूरा नहीं हो सकता . तो चलिए थोडा कुछ मैं भी कह देती हूँ अपनी तरफ से. ये एक मानवीय प्रकृति है कि हमें जिस काम को करने के…
लोकप्रिय प्रविष्टियां
चाँद हमेशा से कल्पनाशील लोगों की मानो धरोहर रहा है खूबसूरत महबूबा से लेकर पति की लम्बी उम्र तक की सारी तुलनाये जैसे चाँद से ही शुरू होकर चाँद पर ही ख़तम हो जाती हैं.और फिर कवि मन की तो कोई सीमा ही नहीं है उसने चाँद के साथ क्या क्या प्रयोग नहीं किये…बहुत कहा वैज्ञानिकों ने कि चाँद की…
आज मुस्कुराता सा एक टुकडा बादल का मेरे कमरे की खिड़की से झांक रहा था कर रहा हो वो इसरार कुछ जैसे जाने उसके मन में क्या मचल रहा था देखता हो ज्यूँ चंचलता से कोई मुझे अपनी उंगली वो थमा रहा था कह रहा हो जैसे आ ले उडूं तुझे मैं बस पाँव निकाल देहरी से बाहर जरा सा.…
होरी खेलन चल दिए श्री मुसद्दी लाल कुर्ता धोती श्वेत चका चक, भर जेब में अबीर गुलाल. दबाये मूँह में पान, कि आज़ नही छोड़ेंगे संतो भौजी को तो, आज़ रंग के ही लौटेंगे. और फिर भोली छवि भौजी की, अंखियन में भर आई बिन गुलाल लाल भए गाल, होटन पे मुस्की सी छाई. आने लगी याद लड़कपन की वो…
अनवरत सी चलती जिन्दगी में अचानक कुछ लहरें उफन आती हैं कुछ लपटें झुलसा जाती हैं चुभ जाते हैं कुछ शूल बन जाते हैं घाव पनीले और छा जाता है निशब्द गहन सा सन्नाटा फ़िर इन्हीं खामोशियों के बीच। रुनझुन की तरह, आता है कोई यहीं कहीं आस पास से करीब के ही झुरमुट से जुगनू की तरह चमक जाता…